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नारी की व्यथा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :124
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9590
आईएसबीएन :9781613015827

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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ


113. पुरूष प्रधान इस देश ने


पुरूष प्रधान इस देश ने
दिया है मुझको दर्जा बड़ा
मेरे लिये कानून बना दिये
जिनका ना लेती मैं फायदा।

मैं अपनी सीमा में रहकर
रहती हूँ तुम पर ही निर्भर

मैं पतिव्रता नारी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।

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संसार की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाली नारी सदैव समाज के केन्द्र में रही है। और उसने हमेशा अपने कार्य से सबको मंत्रमुग्ध करके समाज में अपनी एक अलग पहचान बना कर रखी है। इसलिए प्राचीन काल से लेकर आज तक सदैव नारी पूजनीय रही है।

कवि नवलपाल प्रभाकर का यह दूसरा कविता संग्रह नारी की व्यथा प्रकाशित हो रहा है। इसमें 113 रूबाईयां हैं। जिनके माध्यम से कवि ने नारी के हर पहलू को बखूबी दिखाने का प्रयास किया है। इसमें नारी की व्यथा तथा उसके बहुआयामी चरित्र पर प्रकाश डाला गया है।

- मधुकांत
प्रज्ञा साहित्य मंच
सांपला

अनुक्रम

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