ई-पुस्तकें >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
54. अब काफी दिन बीत चुके थे
अब काफी दिन बीत चुके थे
फोन तक उसका ना आया
फिर एक दिन डरते-डरते
मैंने खुद उसे फोन मिलाया
क्या तुम नाराज हो मुझसे
ऐतराज ये मैंने जता दिया
ना ! पत्थर हृदय वाली हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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