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नारी की व्यथा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :124
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9590
आईएसबीएन :9781613015827

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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ


54. अब काफी दिन बीत चुके थे


अब काफी दिन बीत चुके थे
फोन तक उसका ना आया
फिर एक दिन डरते-डरते
मैंने खुद उसे फोन मिलाया

क्या तुम नाराज हो मुझसे
ऐतराज ये मैंने जता दिया

ना ! पत्थर हृदय वाली हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।

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