ई-पुस्तकें >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
53. अन्त में जाने को बोल मैं
अन्त में जाने की बोल मैं
अलविदा कह वहाँ से चल दी
तब तक वह वहाँ खड़ा
बस मुझे ही ताकता रहा
बातें उससे और भी करती
समय की पूर्ति कहाँ से करती
समय में बंधी बेचारी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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