ई-पुस्तकें >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
30. फिर पिता भी मान गये
फिर पिता भी मान गये
उस बूढ़े को जान गये
बच्ची हूँ अभी मैं छोटी
ये बात भी पहचान गये
पर शादी तो करनी ही है
जिन्दगी तो यूँ ही चलनी है
मैं पिता की समझदारी हूँ।
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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