ई-पुस्तकें >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
31. अभी सोलहवीं दहलीज पर हूँ
अभी सोलहवीं दहलीज पर हूँ
मन में उमंग भरने लगी हूँ
आकाश में उड़ने लगी हूँ
बाहरी नजरों से बचने लगी हूँ।
छेड़े ना कोई मुझको
रिश्तों में मानती हूँ सबको
नजरें मैं झुका कर चलती हूँ,
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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