ई-पुस्तकें >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
92. अब वो दिन भी आया
अब वो दिन भी आया
जब बेटे ने धर्म करवाया
मेरी गोद में पोता देकर
चौक के बीच मुझे बिठाया
अब जो भी खाना खाता
बेटे को देखने जरूर आता
सबको अपना पोता दिखाती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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