ई-पुस्तकें >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
74. अब बच्चे स्कूल जाने लगे
अब बच्चे स्कूल जाने लगे
मैं बूढ़ी चलने से लाचार
बैठी रहती घर के कोने में
ना सुनता कोई मेरे विचार
मेरी आँखे पत्थर हुईं
और हड्डियाँ कठोर हुई
अब जीवन से मैं हारी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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