ई-पुस्तकें >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
73. फिर एक दिन दोनों की भी
फिर एक दिन दोनों की भी
कर ही दी मैंने शादी
मात-पिता ऋण से ऊऋण हो
अब चाहती थी मैं आजादी
उलझ गई मैं उनके बच्चों में
पालती-पोषती खिलाती उन्हें,
बच्चों से मैं राजी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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