ई-पुस्तकें >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
87. एक दिन बस यूँ ही
एक दिन बस यूँ ही
मैं और मेरे पोते की मम्मी
जिद्द करने लगे साथ जाने की
और खेत में काम करने की
मेहनत करते हैं वो दोनों
ठंडी छाँव में बैठ हम दोनों
छाया में बैठ पोते को खिलाती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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