ई-पुस्तकें >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
80. कई गाँव छोड़, एक नहर पर
कई गाँव छोड़, एक नहर पर
वह ढीठ कहने लगा
माँ तुम बैठो आज यहीं पर
आऊँगा, मैं कह जाने लगा
मैं बोलती रही तब तक
आँखों से ओझल हुआ जब तक
घूम-घूम कर मैं हारी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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