ई-पुस्तकें >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
40. पिता की आँखें डबडबाई
पिता की आँखें डबडबाई
उसने अपनी नजरें झुकाई
मैं अश्रु पोंछने लगी
माँ भी धार बहाने लगी
तीनों की आँखें थी गीली
ओर नजरें नीची थी,
आँखें गीली, मैं पानी हूँ,
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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