ई-पुस्तकें >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
7. अब तो कुछ ही दिन रह गये
अब तो कुछ ही दिन रह गये
मैं भी तो दुनियाँ देखूँगी
कैसा इसका रूप-रंग हैं
खुद को रंग में रंग लूँगी
फिर वो दिन भी आ गया
जब फिर मेरा जन्म हुआ
माँ की मैं आभारी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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