ई-पुस्तकें >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
8. जन्म जब मेरा हुआ तो
जन्म जब मेरा हुआ तो
माँ की खुशी का पार न था
पिता ने जब गोद में मुझे लिया
उसका चेहरा कुछ उदास था
मैं उस समय अबोध थी
जो पिता को समझ न सकी
दोनों की गोद में मैं सुखी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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