ई-पुस्तकें >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
94. मेरे हृदय में हिलोरें उठी
मेरे हृदय में हिलोरें उठी
आँखों में नदी बह निकली
पर किसी को महसूस न हो
इसलिये मैंने आँखें छुपा ली
मेरी नजरें चारों पर थी
खा रहे थे भूखों की भाँति
देखकर हालत रोती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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