ई-पुस्तकें >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
69. फिर भी दिन रात मेहनत की
फिर भी दिन रात मेहनत की
बर्तन माँजे, नौकरी की
बच्चों को भी खूब पढ़ाया
नौकरी काबिल उन्हें बनाया
मुझको ताने दिये लोगों ने
मैंने अनसुना किया उन्हें
गूँगी-बहरी मति की मारी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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