ई-पुस्तकें >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
1. मैं तो जन्म से मृत्युपर्यन्त
मैं तो जन्म से मृत्युपर्यन्त
जीवन रूपी अथाह सागर में
लहरों पर तैरती, डूबती
पार करने की सोचती।
डरती हूँ मैं नारी से ही
जबकि खुद मैं हूँ नारी
मैं अभागिन बेचारी हूँ,
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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