ई-पुस्तकें >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
35. घर अकेली होने पर मुझको
घर अकेली होने पर मुझको
एक साथी की जरूरत खलती
जीवन रूपी डोर बाँध मैं
उस साथी के सहारे चलती
साथी मिलेगा कहाँ मुझे
सोचती रहती हूँ मैं ये
करती उड़ने की तैयारी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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