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नारी की व्यथा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :124
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9590
आईएसबीएन :9781613015827

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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ


33. जवानी ने अब दस्तक दे दी


जवानी ने अब दस्तक दे दी,
मेरे गदराये तन पर भी
अब तक यूँ ही रहती थी मैं
मगर सँवरने अब मैं लगी

झड़ी लगी हैं फूलों की
हर क्यारी महकने लगी।

आसमान में उड़ने लगी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।

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