ई-पुस्तकें >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
33. जवानी ने अब दस्तक दे दी
जवानी ने अब दस्तक दे दी,
मेरे गदराये तन पर भी
अब तक यूँ ही रहती थी मैं
मगर सँवरने अब मैं लगी
झड़ी लगी हैं फूलों की
हर क्यारी महकने लगी।
आसमान में उड़ने लगी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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