ई-पुस्तकें >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
4. उस दिन मैं पूरी रात यह
उस दिन मैं पूरी रात यह
सोच-सोच हैरान रही
क्यों एक नारी दूजी नारी के
गले को गर्भ में घोट रही।
ना मैं सोई, ना माँ सोई
मैं गर्भ में, माँ बाहर रोई
मैं पेट में, माँ की लाचारी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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