ई-पुस्तकें >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
71. शायद मेरी इन खुशियों का
शायद मेरी इन खुशियों का
कोई भी आधार न होगा
कब आँधी आये, डग्गा लगे
सबकुछ विचलित ऐसे होगा
शायद मेरे घर को भी
किसी की बुरी नजर लगी,
यह सोच मैं हारी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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