ई-पुस्तकें >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
103. तब अपने पुत्रों से मैं
तब अपने पुत्रों से मैं
पूछती हूँ हाल उनका
बारी-बारी उन चारों को
गले लगाकर माथा चूमा।
सांत्वना देकर उन सभी को
निश्चिंत किया मैंने सबको।
अब आँसू पोंछती जाती हूँ,
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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