ई-पुस्तकें >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
99. रहा डोल मन में मेरे
रहा डोल मन में मेरे
यही अजीब-सा सवाल
चार-चार धनी बेटे मेरे
जो आज बने हैं कंगाल
मोहताज हैं ये इनके
खड़े हैं पास ये जिनके
तब ममता मन में लाती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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