ई-पुस्तकें >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
|
6 पाठकों को प्रिय 268 पाठक हैं |
मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
61. मैं जो बोल पाती कुछ तो
मैं जो बोल पाती कुछ तो
उससे पहले घर वो आये
मैंने आँसू अपने पोंछे
खड़ी हुई सिर को झुकाये
यह नहीं बोलेगी कुछ
आज तो बोलूँगा मैं सबकुछ
यह सुन चुप हो जाती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
¤ ¤
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book