ई-पुस्तकें >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
12. फिर जब कुछ हुई बड़ी तो
फिर जब कुछ हुई बड़ी तो
पढ़ने चली स्कूल मैं
पढ़ने में अव्वल रही सदा
आती थी हर साल प्रथम मैं
मैं हमेशा खुश रहती थी
हर दुख, हर गम सहती थी।
माँ-पिता के साथ सुखी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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