ई-पुस्तकें >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
संसार की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाली नारी सदैव समाज के केन्द्र में रही है। और उसने हमेशा अपने कार्य से सबको मंत्रमुग्ध करके समाज में अपनी एक अलग पहचान बना कर रखी है। इसलिए प्राचीन काल से लेकर आज तक सदैव नारी पूजनीय रही है।
कवि नवलपाल प्रभाकर का यह दूसरा कविता संग्रह नारी की व्यथा प्रकाशित हो रहा है। इसमें 113 रूबाईयां हैं। जिनके माध्यम से कवि ने नारी के हर पहलू को बखूबी दिखाने का प्रयास किया है। इसमें नारी की व्यथा तथा उसके बहुआयामी चरित्र पर प्रकाश डाला गया है।
प्रज्ञा साहित्य मंच
सांपला
अनुक्रम
- नारी की व्यथा
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- भूमिका
- 1. मैं तो जन्म से मृत्युपर्यन्त
- 2. बोली दादी, बेटा बहू का
- 3. अल्ट्रासाउँड से माँ के पेट में
- 4. उस दिन मैं पूरी रात यह
- 5. अब हर दिन हर रात मैं
- 6. शायद सुन ली भगवान ने मेरी
- 7. अब तो कुछ ही दिन रह गये
- 8. जन्म जब मेरा हुआ तो
- 9. माँ भी मुझको पुचकारती
- 10. मुझको उँगली पकड़ कर माँ
- 11. माँ के गर्म-गर्म आँचल में
- 12. फिर जब कुछ हुई बड़ी तो
- 13. पिता शाम को जब घर आता
- 14. अब जब पाँचवी पास करी तब
- 15. यह देख फिर माँ मेरी
- 16. जब मैंने पूछा माँ से
- 17. जब भी मेरी छुट्टी के दिन
- 18. मैं हमेशा हँसती रहती
- 19. पूरी कक्षा में मैं अव्वल
- 20. जो कम बुद्धि सहपाठी होते
- 21. पढ़कर जब स्कूल से आती
- 22. अब जब मैंने दसवीं कर ली
- 23. अब पिता और माँ को मेरी
- 24. पिता मजदूर मजदूरी करता
- 25. पिता संयम धर यूँ बोले
- 26. फिर मैं आकर लेट गई
- 27. पिता ढूँढने लगा जो वर
- 28. इसी समाज के इक कोने में
- 29. जब माँ को पता चला तो
- 30. फिर पिता भी मान गये
- 31. अभी सोलहवीं दहलीज पर हूँ
- 32. अब पहरों दर्पण आगे
- 33. जवानी ने अब दस्तक दे दी
- 34. अब दुखों से अनभिज्ञ मैं
- 35. घर अकेली होने पर मुझको
- 36. एक शाम जब पिताजी आये
- 37. आगे की जब बात सुनी तो
- 38. सुनकर यह रहा ना गया
- 39. मेरे कहने पर पिता बोले
- 40. पिता की आँखें डबडबाई
- 41. पूरे घर का माहौल एकदम
- 42. कुछ देर में ही हम तीनों
- 43. फिर चुप्पी को तोड़ते हुए
- 44. अन्त में आधी रात तक
- 45. मिलूँ किससे मैं ये सोचूँ
- 46. पता नहीं जाने कब मेरी
- 47. कभी इस समाज का डर
- 48. तभी माँ ने मुझे धंधेड़ा
- 49. माँ का खाना तैयार किया
- 50. सहेली के कहने पर मैंने
- 51. दहेज के बारे में तुमने
- 52. मैं बोलती जा रही थी
- 53. अन्त में जाने को बोल मैं
- 54. अब काफी दिन बीत चुके थे
- 55. अब मैं चुप, वह बोल रहा था
- 56. अब कह दो अपने पिता से
- 57. आज शाम को ही प्रिये
- 58. उसके शब्द सुन-सुन
- 59 जो होगा देखा जायेगा
- 60. शाम को जब माँ और पिता
- 61. मैं जो बोल पाती कुछ तो
- 62. मैंने इसको जब देखा
- 63. तुम शादी की करो तैयारी
- 64. शादी का दिन वह आ गया
- 65. सुहागरात की सेज पर
- 66. सोचा मैंने, इक दिन मैं
- 67. चार साल में चार-चार
- 68. छोटा पुत्र जब मेरा
- 69. फिर भी दिन रात मेहनत की
- 70. बच्चे काबिल, शादी कर दी
- 71. शायद मेरी इन खुशियों का
- 72. बड़े की शादी को अभी
- 73. फिर एक दिन दोनों की भी
- 74. अब बच्चे स्कूल जाने लगे
- 75. इक दिन चारों ने विचार किया
- 76. बड़े का फैसला मान्य था
- 77. आठ महीने तो मेरी
- 78. आँखों से मैं अंधी
- 79. चारों बेटों को मैंने
- 80. कई गाँव छोड़, एक नहर पर
- 81. भटक रास्ता मारी-मारी
- 82. पास के गाँव का एक आदमी
- 83. लेकर घर गया अपने तो
- 84. बाँझ कहकर बुलाने वाली
- 85. कहने लगा फिर वह बेटा मेरा
- 86. नहीं-नहीं बेटा अभी
- 87. एक दिन बस यूँ ही
- 88. पोते को गोद में सुलाते हुए
- 89. फिर दोनों दौड़कर आते हैं
- 90. देखकर हाँडी दोनों की
- 91. तब बेटे को कहती हूँ
- 92. अब वो दिन भी आया
- 93. मेरे वो चारों बेटे
- 94. मेरे हृदय में हिलोरें उठी
- 95. कितनों ने खाया कितने चले गये
- 96. तभी अचानक खिलाने वाला
- 97. जब उन चारों ने देखा
- 98. मुँहबोला बेटा बोल रहा था
- 99. रहा डोल मन में मेरे
- 100. मेरे उन चारों बेटों की
- 101. लगाना चाहती हूँ छाती से
- 102. फिर उनके पास जाकर
- 103. तब अपने पुत्रों से मैं
- 104. जिस दिन से माँ तू गई
- 105. भूल गई सभी पुरानी बातें
- 106. यदि नारी मालकिन बने तो
- 107. सब भाइयों को एक किया
- 108. आज इस समाज में औरत का
- 109. आज जहाँ कहीं भी देखें
- 110. आज समाज में औरत को
- 111. यदि नारी शक्ति बन गई
- 112. मैं शेरनी तुम खुले भेड़िये
- 113. पुरूष प्रधान इस देश ने
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