ई-पुस्तकें >> उर्वशी उर्वशीरामधारी सिंह दिनकर
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राजा पुरुरवा और अप्सरा उर्वशी की प्रणय गाथा
'विक्रमोर्वशीयम' नाटक के शीर्षक से ही ध्वनित है - पराक्रम से उर्वशी की प्राप्ति। महाकवि कालिदास के इस द्वितीय नाटक 'विक्रमोर्वशीयम' में राजा पुरूरवा और उर्वशी नामक अप्सरा की प्रणयगाथा वर्णित है।
कथाक्रम इस प्रकार है- केशी राक्षस से संत्रस्त उर्वशी अप्सरा का राजा पुरूरवा उद्धार करता है। वे एक दूसरे पर आकर्षित हैं। उर्वशी राजा के प्रणय पर मंत्रमुग्ध है। विदूषक माणवक की त्रुटी से उर्वशी का एक विशिष्ट 'प्रणयपत्र' देवी औशीनरी को हस्तगत हो जाता है। राजा उससे डाँट खा कर उसका कोप शांत करता है।
उधर... इन्द्रसभा में आचार्य भरतमुनि द्वारा निर्देशित एक विशेष नाटक में उर्वशी 'पुरुषोत्तम विष्णु' के स्थान पर 'पुरूरवा' नाम का उच्चारण कर देती है। तब क्रोधित भरतमुनि उर्वशी को शाप दे देते हैं कि - 'वह पुत्रदर्शन तक मृत्युलोक में ही जीवन यापन करे।' उसी समय से उर्वशी राजा के पास रहने लगती है।
तभी राजा पुरूरवा एक विद्याधर-कुमारी पर मुग्ध हो जाता है और क्रुद्ध उर्वशी कुमार कार्तिकेय के गन्धमादन उपवन में प्रवेश कर लेती है। कार्तिकेय का नियम था कि जो भी नारी गंधमादन उपवन में आएगी, वह लता के रूप में परिवर्तित हो जाएगी। उर्वशी लता हो जाती है। शोकमग्न राजा के लिए तब आकाशवाणी होती है- 'संगमनीय मणि साथ रख कर लता रूपी उर्वशी का आलिंगन करते ही वह पूर्वस्वरूप को प्राप्त कर लेगी।'
यह उपाय करके राजा लता को उर्वशी के रूप में प्राप्त कर लेता है।
इसी मध्य एक गिद्ध उसी संगमनीय मणि को चुरा कर गगन में उड़ जाता है। एक अज्ञात व्यक्ति के बाण से वह गिद्ध मारा जाता है। उस बाण विशेष पर 'पुरूरवा का पुत्र - आयुष' अंकित रहता है। उर्वशी अपने पुत्र को च्यवन ऋषि के आश्रम में सकारण छुपा रखती है। पुत्र-दर्शन होते ही पुनः स्वर्ग प्रस्थान के आदेश से वह घोर दु:खमग्न है। तभी इन्द्रलोक से नारद मुनि का आगमन होता है और वे सूचित करते हैं कि इन्द्र को संग्राम में पुरूरवा की सहायता सर्वथा अपेक्षित है, अतः, इन्द्र ने कृपापूर्वक कहा कि उर्वशी पुरूरवा के पास ही विद्यमान रहेगी।
उर्वशी
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