लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> उर्वशी

उर्वशी

रामधारी सिंह दिनकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9729
आईएसबीएन :9781613013434

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

205 पाठक हैं

राजा पुरुरवा और अप्सरा उर्वशी की प्रणय गाथा

भाग - 1

प्रतिष्ठानपुर का राजभवन :
पुरुरवा की महारानी औशीनरी अपनी दो सखियों के साथ


औशीनरी
तो वे गये?

निपुणिका
गये ! उस दिन जब पति का पूजन करके,
लौटीं, आप प्रमदवन से संतोष हृदय में भरके।
लेकर यह विश्वास, रोहिणी और चन्द्रमा जैसे,
हैं अनुरक्त, आपके प्रति भी महाराज अब वैसे।
प्रेमासक्त रहेंगे, कोई भी न विषम क्षण होगा,
अन्य नारियों पर प्रभु का अनुरक्त नहीं मन होगा।
तभी भाग्य पर देवि ! आपके कुटिल नियत मुसकाई,
महाराज से मिलने को उर्वशी स्वर्ग से आई।

औशीनरी
फिर क्या हुआ ?

निपुणिका
देवि, वह सब भी क्या अनुचरी कहेगी ?

औशीनरी
पगली ! कौन व्यथा है जिसको नारी नहीं सहेगी ?
कहती जा सब कथा, अग्नि की रेखा को चलने दे,
जलता है यदि हृदय अभागिन का, उसको जलने दे।
सानुकूलता कितनी थी उस दिन स्वामी के स्वर में ,
समझ नहीं पाती, कैसे वे बदल गए क्षण भर में !

ऐसी भी मोहिनी कौन-सी परियाँ कर सकती हैं,

पुरुषों की धीरता एक पल में यों हर सकती हैं !
छला अप्सरा ने स्वामी को छवि से या माया से?
प्रकटी जब उर्वशी चन्द्नी में द्रुम की छाया से।
लगा, सर्प के मुख से जैसे मणि बाहर निकली हो,
याकि स्वयं चाँदनी स्वर्ण-प्रतिमा में आन ढली हो।
उतरी हो धर देह स्वप्न की विभा प्रमद-उपवन की,

उदित हुई हो याकि समन्वित नारीश्री त्रिभुवन की।

कुसुम-कलेवर में प्रदीप्त आभा ज्वालामय मन की,
चमक रही थी नग्न कांति वसनों से छन कर तन की।
हिमकण-सिक्त-कुसुम-सम उज्जवल अंग-अंग झलमल था,
मानो, अभी-अभी जल से निकला उत्फुल्ल कमल था।

किसी सान्द्र वन के समान नयनों की ज्योति हरी थी,

बड़ी-बड़ी पलकों के नीचे निद्रा भरी-भरी थी।
अंग-अंग में लहर लास्य की राग जगानेवाली,
नर के सुप्त शांत शोणित में आग लगानेवाली।

मदनिका
सुप्त, शांत कहती हो?
जलधारा को पाषाणों में हाँक रही जो शक्ति,
वही छिप कर नर के प्राणों में दौड़-दौड़,
शोणित प्रवाह में लहरें उपजाती है,
और किसी दिन फूट प्रेम की धारा बन जाती है।
पर, तुम कहो कथा आगे की, पूर्ण चन्द्र जब आया,
अचल रहा अथवा मर्यादा छोड़ सिन्धु लहराया ?

0

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book