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श्रीमद्भगवद गीता - भावप्रकाशिनी

डॉ. लक्ष्मीकान्त पाण्डेय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :93
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9645
आईएसबीएन :9781613015896

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गीता काव्य रूप में।

श्रीमद्‌भगवद्‌गीता(भावप्रकाशिनी)हिन्दी

प्रणति

श्रीमद्भगवद्गीता विश्व ग्रंथ है। यह चिंतन की पराकाष्ठा का केन्द्र है। भारतीय दर्शन मे श्रीमद्भगवद्गीता की गणना प्रस्थान त्रयी  में की जाती है। कर्मनिष्ठा और वैराग्य का यह संगम विश्व साहित्य में नहीं मिल सकता। भक्ति तो प्रतिपाद्य है ही। भक्ति की प्रधानता के कारण श्रीमद्भगवद्गीता को हिन्दू धर्म  का सीरमौर माना या है। संतों ने श्रीमद्भगवद्गीता के संपूर्ण नित्य पाठ या  अध्याय विशेष के पाठ के विधान बताये हैं। वे चमत्कारी भी हैं और साधक लाभान्वित होते रहे हैं। नित्य पाठ में संस्कृत न  जानने वाले साधकों को असुविधा होती है  क्योंकि गद्यानुवाद समझने में सहायक होते हैं पाठ में नहीं। यह भावप्रकाशन ईश्वर  की उसी प्रेरणा का प्रतिफल है।

समर्पण

मेरी हो तो तुमको दे दूँ, यह तो तेरी है।
अपना मैंने मान लिया प्रभु, यह त्रुटि मेरी है।।
योऽसि-सोऽसि स्वीकार करो प्रभु तुम्हें समर्पित।
रचना का अभिमान नहीं, तव वाणी अनुकृत।।
भक्त्यक्षत पय-कर्म ज्ञान-कुश संकल्पित हो।
तव वाणी ही करता प्रभुवर अर्पित तुमको।।
।। ॐ श्रीकृष्णार्पणमस्तु ।।

 

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