ई-पुस्तकें >> श्रीमद्भगवद गीता - भावप्रकाशिनी श्रीमद्भगवद गीता - भावप्रकाशिनीडॉ. लक्ष्मीकान्त पाण्डेय
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गीता काव्य रूप में।
श्रीमद्भगवद्गीता(भावप्रकाशिनी)हिन्दी
प्रणति
श्रीमद्भगवद्गीता विश्व ग्रंथ है। यह चिंतन की पराकाष्ठा का केन्द्र है। भारतीय दर्शन मे श्रीमद्भगवद्गीता की गणना प्रस्थान त्रयी में की जाती है। कर्मनिष्ठा और वैराग्य का यह संगम विश्व साहित्य में नहीं मिल सकता। भक्ति तो प्रतिपाद्य है ही। भक्ति की प्रधानता के कारण श्रीमद्भगवद्गीता को हिन्दू धर्म का सीरमौर माना या है। संतों ने श्रीमद्भगवद्गीता के संपूर्ण नित्य पाठ या अध्याय विशेष के पाठ के विधान बताये हैं। वे चमत्कारी भी हैं और साधक लाभान्वित होते रहे हैं। नित्य पाठ में संस्कृत न जानने वाले साधकों को असुविधा होती है क्योंकि गद्यानुवाद समझने में सहायक होते हैं पाठ में नहीं। यह भावप्रकाशन ईश्वर की उसी प्रेरणा का प्रतिफल है।
समर्पण
अपना मैंने मान लिया प्रभु, यह त्रुटि मेरी है।।
योऽसि-सोऽसि स्वीकार करो प्रभु तुम्हें समर्पित।
रचना का अभिमान नहीं, तव वाणी अनुकृत।।
भक्त्यक्षत पय-कर्म ज्ञान-कुश संकल्पित हो।
तव वाणी ही करता प्रभुवर अर्पित तुमको।।
।। ॐ श्रीकृष्णार्पणमस्तु ।।
विषय-सूची
- श्रीमद्भगवद्गीता (भावप्रकाशिनी) हिन्दी
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- विनय
- अथ पहला अध्याय : अर्जुन विषादयोग
- अथ दूसरा अध्याय : सांख्य योग
- अथ तीसरा अध्याय : कर्म योग
- अथ चौथा अध्याय : ज्ञान-कर्म संन्यास योग
- अथ पाँचवाँ अध्याय : कर्म संन्यास योग
- अथ छठा अध्याय : आत्म संयम योग
- अथ सातवां अध्याय : ज्ञान विज्ञान योग
- अथ आठवाँ अध्याय : अक्षर ब्रह्म योग
- अथ नवाँ अध्याय : राजविद्याराजगुह्मयोग
- अथ दशवाँ अध्याय : विभूतियोग
- अथ ग्यारहवां अध्याय : विश्वरूप दर्शन योग
- अथ बारहवाँ अध्याय : भक्ति योग
- अथ त्रयोदश अध्याय : क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग
- अथ चौदहवाँ अध्याय : गुणत्रय विभाग योग
- अथ पन्द्रहवाँ अध्याय : पुरुषोत्तम योग
- अथ सोलहवाँ अध्याय : देवासुरसंपद विभाग योग
- अथ सत्रहवां अध्याय : श्रद्धात्रय विभाग योग
- अथ अठारहवाँ अध्याय : मोक्ष संन्यास योग
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