लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> श्रीमद्भगवद गीता - भावप्रकाशिनी

श्रीमद्भगवद गीता - भावप्रकाशिनी

डॉ. लक्ष्मीकान्त पाण्डेय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :93
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9645
आईएसबीएन :9781613015896

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

411 पाठक हैं

गीता काव्य रूप में।

।। ॐ श्रीपरमात्मने नम:।।

अथ छठा अध्याय : आत्म संयम योग

कर्म योग  कैसे  करें,  है श्रेयस्  का मार्ग।
अर्जुन को समझा रहे, जिससे रहे न राग।।


प्रभु कहते योगी संन्यासी, वह ही जो फल तज करे कर्म।
जो यज्ञ कर्म तजते उनको, न ज्ञात योग संन्यास मर्म।।१।।
संकल्प हीन संन्यासी को तुम कर्म निरत योगी जानो।
यदि त्याग नहीं संकल्पों का, मत उसे पार्थ योगी मानो।।२।।
यदि योगी भी बनना चाहे, कर्तव्य कर्म करना ही है।
तब शान्ति प्राप्त करना होगा जब योग मार्ग चलना ही है।।३।।
सारे संकल्पों कर्मों को, योगी जब मन से तजता है।
विषयों से उपरत हो जाता, वह तभी योग में रमता है।।४।।
अपना उत्थान स्वयं होता, मत कभी पतन की ओर बढ़ो।
तुम शत्रु-मित्र अपने खुद हो, इस आत्म शिखर पर स्वयं चढ़ो।।५।।
देहादि भोग जो त्याग सका, वह आत्मजयी अपना भाई।
वह स्वयं बना अपना बैरी, यदि बात समझ में ना आई।।६।।
अपमान-मान, सर्दी-गर्मी, सुख-दुःख को सहे समान मान।
वह आत्मजयी जन परमशांत, उसको ईश्वर में लीन जान।।७।।
जो पुरुष जितेन्द्रिय, ज्ञान पुष्ट, नित निर्विकार जैसे अहरन।
वह योगी मुक्त जिसे होते मिट्टी, पत्थर, सोना ये सम।।८।।
मध्यस्थ, उदासी, सुहृद, सखा, अरि, द्वेषि, साधु पापाचारी।
सबमें सम भाव रहे जिसका, बस वही योग का अधिकारी।।९।।
तन मन वश में, दे मोह त्याग, कुछ भी ना जो आदान करे।
एकान्त बास, एकाकी रह, योगी ईश्वर का ध्यान धरे।।१०।।
पावन प्रदेश समतल धरती, कुश, वस्त्र बिछा या मृगछाला।
योगी समाधि में उन्मुख हो, बन करके दृढ़ आसन वाला।।११।।
आसन पर बैठ चित्त, इन्द्रिय निग्रह कर मन एकाग्र करे।
इस भांति आत्मशोधन तत्पर, योगी नित योगाभ्यास करे।।१२।।
काया, सिर, ग्रीवा सीधे हों, रह अचल न देखे इधर-उधर।
नासिका अग्र पर ध्यान रखे, इस तरह ध्यान स्थित होकर।।१३।।
हो ब्रह्मचर्ययुत, शान्तचित्त, भय रहित संयमी साधक जो।
निक्षेप चित्त का मुझमें कर, बैठे मुझमें ह्री तत्पर हो।।१४।।
संयत मन वाले योगी जन मेरा ही ध्यान लगाते हैं।
मुझमें जब स्थिति हो जाती, तब परम शान्ति को पाते हैं।।१५।।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book