लोगों की राय

नई पुस्तकें >> पलायन

पलायन

वैभव कुमार सक्सेना

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15417
आईएसबीएन :9781613016800

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

गुजरात में कार्यरत एक बिहारी मजदूर की कहानी

प्रिव्यू के लिये यहाँ क्लिक करें

Palayan - story of a Bihari in Gujrat by Vaibahv Kumar Saxena

जिस तरह सिक्के के दो पहलू होते हैं, उसी तरह इस उपन्यास को भी दो पहलुओं में देखा जा सकता है । इसके एक पहलू से मां की संवेदनाएं जुड़ी हैं तो वहीं दूसरे पहलू में भाषा के आधार पर समुदाय के विभाजन को स्पष्ट किया है।

भारत में 26 से अधिक भाषाएँ बोली जाती हैं। जब हम गुजरात पहुँचते हैं तो गुजराती सुनने को मिलती है वहीं पंजाब पहुँचते हैं तो पंजाबी या फिर महाराष्ट्र पहुँचे तो मराठी और बिहार पहुँचे तो बिहारी, ऐसे में कहीं अगर कर्नाटक पहुँच गए तो कन्नड़ और तमिलनाडु पहुँच गए तो तमिल या फिर आंध्रा पहुँचे तो तेलगु और केरल पहुँचे तो मलयालम । लेकिन अगर जब मराठी को पंजाबी या फिर गुजराती को बिहारी से बात करनी हो तब हिंदी बोली जाती है कहने का अर्थ है हिंदी में वो ताकत है जो संपूर्ण भारत को एकता के सूत्र में बांधती है। ऐसे में अगर यह भाषाएं समुदाय बनकर भारत के लोगों में दीमक की तरह विभाजन का काम करें तो देश की एकता संदेह की दृष्टि में आ जाती है।

जब गुजरात में हिंदी बोलने वाले को हिंदी भाषी बोलकर संबोधित किया जाता है तब ऐसा मालूम होता है कि कहीं न कहीं वह व्यक्ति गुजराती बोली और हिंदी बोली दोनों के समुदाय को अलग-अलग रखने की कोशिश कर रहा है। भारत को समृद्ध बनाने के लिए भारत के नागरिक अपने ही राज्य में नहीं बल्कि भारत के अलग-अलग राज्यों में जाकर काम करते हैं । ऐसे में उस राज्य के कई लोग अतिथि मानकर दूसरे राज्य से आए लोगों के साथ अच्छा व्यवहार कर उन्हें सम्मान देते हैं तो थोड़े ही कुछ लोग भाषा को आधार मानकर खुद को अपना अलग समुदाय का समझकर, उनके साथ दुर्व्यवहार भी कर बैठते हैं।

पुरोवाक्

प्रत्येक राज्य में भारतीयों का रंग रूप लगभग एक समान है। भारत में रह रहा व्यक्ति किस राज्य से ताल्लुक रखता है इसकी तुलना रंग के आधार पर नहीं की जा सकती। अगर कोई बिहारी मध्यप्रदेश या उत्तरप्रदेश में जाकर हिंदी बोलता है तब उससे उसका वतन नहीं पूछा जाता क्योंकि मध्यप्रदेश व उत्तरप्रदेश के निवासियों की भाषा मूल रूप से हिंदी है। लेकिन अगर वही बिहारी अन्य प्रदेश जैसे महाराष्ट्र, गुजरात व अनेक हिंदी न बोले जाने वाले प्रदेशों में जाकर हिंदी बोलता है तो उससे उसका वतन पूछ लिया जाता है। तब वह गर्व से कहता है- `बिहार`। बिहार में जन्म लेने वाले बिहारी जन्म से तो बिहार के है लेकिन उनके कार्य संपूर्ण भारत में प्रचलित है।

आधुनिक भारत के विकास में सीमेंट, सरिया, सिरेमिक व प्लास्टिक जैसे अन्य सामान का उत्पादन तेजी से हो रहा है। मूल रूप से इन फैक्टरियों में काम करने वाले श्रमिक बिहारी ही पाए जाते हैं। बिना श्रमिकों के इन फैक्टरियों का उत्पादन करना असंभव है। आज रहने के लिए मकान, आने जाने के लिए मोटरकार , बिजली व अन्य सुख सुविधाओं में बिहारी श्रमिकों का श्रम देखा जा सकता है।

गुजरात का अहमदाबाद शहर, इसकी आबादी और इसमें काम कर रही कंपनियों की गिनती नहीं। गुजराती लोग स्वादिष्ट भोजन और घूमने – फिरने में बहुत ही दिलचस्पी रखते हैं। यह वही गुजरात है जिसमें माँस और मदिरा दोनों का सेवन ही आदर्शों के खिलाफ है। ऐसे में उतर भारतीयों का गुजरात आना और माँस मदिरा का सेवन करना गुजरतियों के मन में उतरभारतीयों के प्रति एक अलग ही विचार स्थापित करते हैं। कुछ लोग तो बेचूक कहने में नहीं रुकते कि उतर भारतीय लोग गुजरात आकर गुजरात को गंदा कर रहे हैं।

28 सितंबर 2018 को गुजरात में साबरकांठा जिले के गांभोई गांव की सिरेमिक कंपनी में काम करने वाले एक उत्तर भारतीय द्वारा 14 माह की मासूम से हैवानियत की घटना सामने आई। इस घटना ने संपूर्ण उत्तर भारतीयों का सिर गुजरातियों के सामने लज्जा से झुका दिया। 29 सितंबर को मासूम से बलात्कार की आग पूरे गुजरात में फैल गई। जहाँ सभी गुजराती व उत्तर भारतीयों को मिलकर आरोपी को सजा देने के लिए एकजुट होना चाहिए था वहीं गुजरातियों ने गैरगुजरातियों को गुजरात गंदा करने का आरोपी मानकर गुजरात छोड़ने की नसीहत दी।

धीरे-धीरे हिंसा अहमदाबाद में भी फैल गई। गुजरातियों द्वारा मकान खाली कराए जाने लगे थे। करीब पचास हजार से अधिक लोग पलायन कर चुके थे। गुजरात की अर्थव्यवस्था थम रही थी। उद्योगपति व उद्योग अध्यक्ष, पुलिस और सरकारी मंत्रियों से लगातार संपर्क में लगे हुए थे। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बिहारियों की सुरक्षा को लेकर गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपानी से बातचीत जारी थी। रेलवे स्टेशन पर हजारों की तादात में उत्तर भारतीयों की भीड़ जमा हो गई थी... ।

- वैभव सक्सेना

अनुक्रम

Next...

प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book