नई पुस्तकें >> पलायन पलायनवैभव कुमार सक्सेना
|
0 5 पाठक हैं |
गुजरात में कार्यरत एक बिहारी मजदूर की कहानी
10
अमरकांत थाली में लड्डू लेकर छत पर पहुँचा और सभी को लड्डू खिलाए। लड्डू वाकई में इतने अच्छे बने थे कि सभी बार-बार तारीफ कर रहे थे।
इतने में अमित की माँ बोली –"अमित भी ऐसे ही त्योहारों पर घर नहीं आ पाएगा जैसे तुम नहीं जा पाते। अभी तो अमित नौकरी को लेकर बड़ा खुश हो रहा है बाद में उदासी ही उदासी रहेगी। अभी तो हमें घर छोड़कर गया भी नहीं कि दिन में दो-तीन बार रो लेती हूँ जब छ:-छ: महीने नहीं आएगा तब क्या होगा मेरा।"
"क्या तुमने अपनी कंपनी में साहब से बात की?” अमित की माँ ने बोला।
अमरकांत ने कहा कि कल मैं लड्डू ले जाकर साहब को खिलाऊंगा और बात करूंगा शायद वह मान जाए।
अमरकांत की पूरी रात विचारों से भरी निकली। एक ओर अमित की माँ के शब्द, वहीं दूसरी ओर अपनी माँ के शब्द, दोनों ही अमरकांत के सामने बार-बार आ रहे थे। बहुत विचार करने के बाद आखिर सुबह होते ही अमरकांत ने सफेद अर्जी लिख दी।
सुबह जब अमरकांत साहब के पास पहुँचा तो सबसे पहले अमरकांत ने लड्डू का डिब्बा आगे बढ़ाते हुए बोला- "लीजिए साहब माँ ने भेजे हैं माँ के हाथ के तिल्ली के लड्डू।"
अमरकांत के साहब ने लड्डू खाए और तारीफ करने से न रुके बोले- "लड्डू बहुत ही स्वादिष्ट है।"
अमरकांत ने कुर्सी पर बैठकर अपनी सफेद अर्जी रख दी साहब ने अर्जी को पढ़ा और चौंक गए बोले, "क्या हुआ? कहीं दूसरी जगह नौकरी मिल गई क्या।"
"नहीं नहीं, मैंने आपको अमित के बारे में बताया था उसी को नौकरी मेरे रिक्त पद पर दिलवाना चाहता हूँ।" अमरकांत ने कहा।
साहब ने बोला- "ठीक है तो फिर तुम क्या करोगे।"
अमरकांत ने निर्मल शब्दों में कहा- "घर जाकर परिवार के साथ रहूँगा और बिहार में ही कोई नौकरी तलाश कर लूंगा।"
अमरकांत के शब्द सुनते ही साहब ने कहा- "अरे! मेरे पास एक पटना का कांटेक्ट है मैं वहां तुम्हारी सिफारिश जरूर करूंगा।"
"तुम अमित के कागज मुझे मेल कर दो कल तक अमित को इंटरव्यू का कॉल आ जाएगा, 5-6 दिन बाद इंटरव्यू होगा। उससे कहना तैयार रहे" साहब बोले।
अमरकांत खुश था उसे हार कर भी जीत महसूस हो रही थी। आखिर वह दो माँ को अपने बच्चे से अलग होने से बचा रहा था। घर आकर अमरकांत ने अमित की माँ को सूचना दी की अमित की इंटरव्यू की बात पक्की हो गई है।
अमित के घर से अमरकांत जैसे ही वापस हुआ कि उसका फोन रिंग करने लगा। देखा तो 20 दिन बाद दीप्ति का फोन आया। अमरकांत ने दीप्ति का फोन उठाना उचित नहीं समझा।
दीप्ति संक्रांति पर घर आई थी दीप्ति के घर में भी जमकर संक्रांति मनाई जा रही थी। आखिर क्यों न हो, दीप्ति की अच्छे पैकेज में नौकरी जो लग गई है, इससे खुशी में खुशी दो गुनी हो गई थी। सभी दीप्ति को बधाई दे रहे हैं घर आने पर दीप्ति बड़ी ही खुश थी। ऐसे में दीप्ति अमरकांत को कैसे भूल सकती थी? दीप्ति ने दोबारा रिंग किया अमरकांत ने वापस फोन नहीं उठाया।
अमरकांत को थोड़े समय बाद ही अनजान नंबर से मेसेज आया 'मिस यू' अमरकांत ने पहले सोचा दीप्ति की ही शरारत होगी। अमरकांत ने फिर वापस फोन करने का मन बनाया। वापस फोन किया तो सीधा जवाब आया, "फोन क्यों नहीं उठा रहे।"
अमरकांत समझ गया दीप्ति है। अमरकांत ने कहा, "व्यस्त था।"
दीप्ति ने कहा, "क्या तुम सारे दिन ही व्यस्त रहते हो? इसलिए 20 दिन में तुमने मुझे एक बार भी याद नहीं किया"
अमरकांत ने कहा- "तुम देहरादून में मुझे शाम होते ही इस तरह छोड़कर चली गई मुझे लगा तुम उस पल ही मुझे भूल गईं ।"
दीप्ति ने कहा, "भूल जाती तो तुमको अगले दिन सुबह फोन क्यों करती? तुमने अगले दिन सुबह क्यों फोन नहीं उठाया? बिना कहे ही देहरादून से रवाना हो गए।"
अमरकांत के पास जवाब नहीं था दीप्ति ने वापस कहा- "अभी कहां व्यस्त हो?”
अमरकांत ने बताया कुछ काम में लगा था।
दीप्ति ने पूछा, "क्या काम करते हो?”
अमरकांत ने झूठ बोलते हुए कहा- "बिहार में ही कुछ तो भी काम देख लेता हूँ! आखिर मुझे नौकरी कौन देगा?”
दीप्ति ने हंसते हुए बोला अहमदाबाद आ जाओ- "मैं लगवा देती हूँ। कहीं तो भी नौकरी लगवा ही दूंगी।"
अमरकांत ने पूछा, "क्या तुम अहमदाबाद में हो?
दीप्ति ने कहा- "हां ! और तुम कहाँ हो?'
अमरकांत- "हम बिहार छोड़कर कहां जाएंगे हम तो यहीं अच्छे।"
अमरकांत ने दीप्ति से पूछा, "क्या तुम्हें वाकई में मेरी याद आ रही है”?
दीप्ति ने कहा- "हाँ और मिलना भी चाहती हूँ काश तुम मेरे पास होते।"
अमरकांत- "अच्छा ठीक है तुम पता तो भेजो मैं उड़ कर आ जाता हूँ।"
"पागल हो क्या बिहार से अहमदाबाद तुम मुझसे मिलने आ जाओगे।"
अमरकांत ने कहा- "तो क्या हुआ?”
दीप्ति को अमरकांत की बातें पक्के बिहारी जैसी लग रही थीं, "ठीक है! तो लिखो पता।"
अमरकांत ने फटाक से दीप्ति का पता लिख लिया। दीप्ति बोली, "कितने दिन करूं इंतजार?” अमरकांत चुप था। दीप्ति वापस बोली बताओ- "दो दिन, तीन दिन !”
अमरकांत ने दीप्ति से बोला- "बस फ्लाइट में बैठ गया हूँ।"
दीप्ति हँसने लगी और बोली- "फ्लाइट तो एक दो घंटे में आ जाती है।"
अमरकांत बोला – "हां ! तो बस इतना ही समय लगेगा।"
अमरकांत फटाक से तैयार हुआ और दीप्ति के परिवार के लिए माँ के हाथ के बने लड्डू बैग में रखकर अमित के पास पहुँचा। अमरकांत ने अमित से कहा- "तुम्हारी मोटरसाइकिल की चाभी देना।"
अमित ने बिना एक पल सोचे चाभी अमरकांत के हाथों में थमा दी। अमरकांत सीधा 20-25 मिनट में दीप्ति के दिए हुए पते पर दीप्ति के घर पहुँचा।
अमरकांत ने दीप्ति को रिंग किया। दीप्ति ने फटाक से अमरकांत का फोन उठा लिया और पूछा, "आ गए क्या बिहार से?”
अमरकांत ने उत्तर दिया- "हाँ ! तुम्हारे घर के सामने ही खड़ा हूँ।"
दीप्ति को लगा मजाक है, दीप्ति ने कहा, "ठीक है मैं बाहर आती हूँ”! दीप्ति बाल्कनी पर पहुँची और अमरकांत को घर के सामने खड़ा देख चौंक गई। ये सपना है या हकीकत, दीप्ति को समझ नहीं आया।
अमरकांत ने फोन कर वापस दीप्ति को दरवाजा खोलने के लिए कहा।
दीप्ति डर गई अमरकांत एक बिहारी है और उसके घर वाले बिहारी सुनकर ही चौंक जाएंगे। दीप्ति के चाचा भाई भी बिहारियों को पसंद नहीं करते थे। दीप्ति ने अमरकांत से बाहर ही रुकने का आग्रह किया।
अमरकांत समझ गया कि दीप्ति अमरकांत को अपने घर बुलाकर अपने परिवारजनों से मिलाकर अपनी छवि खराब नहीं करना चहाती। कुछ समय बाद ही अमरकांत मोटर साइकिल लेकर वापस अपने घर की और बढ़ गया।
|