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पलायन

वैभव कुमार सक्सेना

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15417
आईएसबीएन :9781613016800

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गुजरात में कार्यरत एक बिहारी मजदूर की कहानी

9

अमरकांत के अहमदाबाद स्टेशन पर पहुँचते ही अमरकांत घर के लिए रिक्शा करता है। रास्ते चलते अमरकांत के हिंदी बोलने के कारण रिक्शा वाले ने पूछ लिया- "कौन से वतन से आए हो।"

अमरकांत ने कहा- "बिहार से।"

रिक्शा वाला- "बिहारी तो सारे गुजरात छोड़ कर चले गए। आप कैसे वापस आ गए?"

अमरकांत बोला- "आ गए तो आ गए !अब अपने वतन में जब नौकरी मिल जाएगी तो चले जाएंगे।"

अमरकांत के रिक्शे से घर पर उतरते ही अमित के घर से शोर सुनाई दिया। यह अमित की माँ के रोने की आवाज आ रही थी। अमरकांत को थोड़े समय में मालूम हुआ कि अमित को हिमाचल की एक मेडिकल कंपनी में नौकरी मिल गई है। अमित के हिमाचल भेजने की माँ की बिल्कुल इच्छा नहीं है। पिताजी अमित को अपनी दुकान संभालने की बात कह रहे हैं। अमित पिताजी की बात पर बिल्कुल सहमत नहीं था। उसे मालूम था कि दुकान करने से उसकी पढ़ाई का कोई मोल नहीं रहेगा। उसकी मार्कशीट स्वर्ण आभूषणों के समान किसी पेटी में रख दी जाएंगी। और उसका अस्तित्व खत्म हो जाएगा। अमित की माँ रो-रो कर अपना बुरा हाल कर रही थी क्योंकि अमित एक ही इकलौता पुत्र था।

अमित तेज आवाज में बार-बार माँ को बोलता, "क्यों पढ़ाई करा दी? अनपढ़ ही रख लेती ताकि मैं यहीं रह सकता! अब पढ़ लिखकर दुकान नहीं होती।"

इतने में अमरकांत महीना पूरा होने पर किराया लेकर अमित के घर पहुँचा।

जैसे ही घर में प्रवेश किया अमित की माँ ने अमरकांत को बैठने को बोला और अमित की हिमाचल में नौकरी लगने की सारी बात बताई। माँ ने बताया कि इतनी दूर भेजने की उनकी इच्छा बिल्कुल भी नहीं है और हिमाचल में वैसे भी खतरनाक सकड़े रास्ते हैं आए दिन बस खाई में मिलती है वहां का मौसम भी अहमदाबाद के मौसम से बिल्कुल अलग है। हर पल मुझे डर लगा रहेगा और फिर हिमाचल आना जाना इतना आसान नहीं।

फिर माँ ने अमरकांत से अमित की नौकरी कहीं आस-पास लगवाने की बात कही।

अमरकांत ने कहा कि वह कल जरूर अपने साहब से बात करेगा। साहब जरूर कुछ न कुछ इंतजाम कर देंगे। अमरकांत को विश्वास था कि उनके साहब जरूर कोई इंतजाम कर देंगे।

अमरकांत को बार-बार अमित की माँ की पीड़ा का ध्यान आ रहा था अमरकांत ने अमित को अपनी कंपनी में किसी भी तरह नौकरी दिलवाने की ठानी।

अमरकांत ने अगले दिन सुबह दफ्तर जाकर साहब से मुलाकात की और सारी कहानी बताई। साहब ने कहा- "अमित को अभी अनुभव नहीं है अमित बाहर जाकर दो-तीन वर्ष का अनुभव इकट्ठा करेगा फिर घर के आस-पास नौकरी देख सकता है।"

अमरकांत ने कहा – "दो-तीन वर्ष बाद भी अगर अमित को घर के पास नौकरी मिले या ना मिले इसकी क्या गारंटी है? मुझे भी तो तीन वर्ष का अनुभव हो गया लेकिन मुझे तो कोई बिहार में नौकरी नहीं मिल रही साहब आप तो उस को अपनी कंपनी में ही नौकरी दिलवा दीजिए।"

साहब बोले- "अपने पास तो अभी कोई पद खाली नहीं है बाकी सभी तो अहमदाबाद के ही रहने वाले हैं तो उनका तो नौकरी छोड़ने का कोई विचार लगता नहीं जब तुम कभी नौकरी छोड़कर जाओगे तब तुम्हारी सिफारिश पर उसको रख लेंगे।"

अमरकांत को ऐसा मालूम हुआ कि जैसे साहब ने उस के साथ मजाक कर दिया हो।

अब अमरकांत के सोचने में दिन गुजर रहे थे वहीं अमित को जनवरी के आखिरी सप्ताह में नौकरी ज्वाइन करना था।

अमरकांत की आज मकर संक्रान्ति की छुट्टी थी। सभी लोग छत पर पतंग उड़ा रहे थे तो गाना बजाना भी लगा हुआ था। एक और मेज पर सारे पकवान जमकर रखे हुए थे। यह सब देखकर अमरकांत को अपने घर की याद आ गई।

कैसे हम लड्डू को मिट्टी की गाड़ी में रखकर पूरा आंगन घुमा कर खाते थे और गिल्ली डंडा उसकी तो बात ही अलग थी। छत पर रखे पकवानों को देखकर अमरकांत को माँ के रखे हुए थैले की याद आ गई। कमरे में पहुँचकर माँ के रखे हुए थैले के पास पहुँचा। थैले में हाथ डालकर अमरकांत का मन लड्डू तलाश रहा था और आखिर सबसे नीचे अमरकांत को तिल्ली के लड्डू की थैली मिल गई। अमरकांत अहमदाबाद आने की तैयारी में इतना व्यस्त था कि उसे पता ही न चला, माँ ने कब तिल्ली के लड्डू बनाकर रख दिए।

अमरकांत को पता था कि माँ का ध्यान हमेशा उसकी ओर रहता है। माँ जानती थी कि संक्रांति पर अमरकांत घर में नहीं रहेगा तो घर के बने हुए लड्डू ही अमरकांत के साथ रख दिए। अमरकांत के मन में कई तरह के ख्याल आ रहे थे।

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