नई पुस्तकें >> पलायन पलायनवैभव कुमार सक्सेना
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गुजरात में कार्यरत एक बिहारी मजदूर की कहानी
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अमित अमरकांत के साथ शनिवार को इंटरव्यू देने गया और थोड़े समय में ही पता चला अमित को इंटरव्यू में पास कर दिया गया है और ठीक अमरकांत के इस्तीफे की तारीख के एक महीने बाद अमित को ज्वाइनिंग की तारीख दी गई। अमित अहमदाबाद में ही नौकरी लगने से खुश था। मगर अमित अमरकांत के समर्पण से वंचित था।
अमित के घर में खुशहाली छा गई। अमरकांत ने बिना समाज से भय किए घर में सूचित किया कि वह घर वापस आ रहा है। अमरकांत को ऐसा लगा अमित की माँ गुजराती हो या मेरी माँ बिहारी, माँ तो माँ होती है हम सबकी माँ भारत माँ है।
करीब छ: माह बाद
अमरकांत एक शाम अपनी बाल्कनी में बैठा था और खुले आसमान में सितारों को देख कर दीप्ति को याद कर रहा था। तभी अमरकांत के पास दीप्ति का फोन आया।
अमरकांत के चेहरे पर मुस्कान आ गई। अमरकांत ने फोन उठाया और बोला- "मुझे लगा तुम भूल गई होगी।"
दीप्ति ने कहा- "तुम हर बार ही गलत समझते हो। मैं नहीं भूली, तुम भूल जाते हो मुझे।"
अमरकांत ने वापस पूछा- "कहाँ हो?”
दीप्ति ने कहा- "देहरादून !”
अमरकांत ने कहा- "अच्छा ! तो कब आऊँ मैं मिलने?”
दीप्ति ने कहा- "बस इसी महीने देहरादून में मेरी रिंग सेरिमनी है। तुमको जरूर आना है।"
अमरकांत ने चौंकते हुए कहा- "क्या तुम सगाई कर रही हो?”
दीप्ति ने कहा- "हाँ ! पिताजी ने मेरी सगाई उनके दोस्त पराग भाई के लड़के के साथ तय कर दी है। वह भी देहरादून में ही नौकरी करता है।"
अमरकांत ने उदास मन लेकर कहा- "बधाई हो। फिर तो दोनों की अच्छे से "
दीप्ति ने कहा- "हाँ ! लेकिन तुमको जरूर आना है।"
अमरकांत ने कहा- "हाँ बिल्कुल!”
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