श्रीरामचरितमानस (अयोध्याकाण्ड)
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वैसे तो रामचरितमानस की कथा में तत्त्वज्ञान यत्र-तत्र-सर्वत्र फैला हुआ है परन्तु उत्तरकाण्ड में तो तुलसी के ज्ञान की छटा ही अद्भुत है। बड़े ही सरल और नम्र विधि से तुलसीदास साधकों को प्रभुज्ञान का अमृत पिलाते हैं।
॥ श्रीगणेशाय नमः॥
श्रीजानकीवल्लभो विजयते
| श्रीरामचरितमानस |
द्वितीय सोपान
अयोध्याकाण्ड
श्लोक
श्रीजानकीवल्लभो विजयते
| श्रीरामचरितमानस |
द्वितीय सोपान
अयोध्याकाण्ड
श्लोक
मंगलाचरण
यस्याङ्के च विभाति भूधरसुता देवापगा
मस्तके भाले बालविधुर्गले च गरलं यस्योरसि व्यालराट्।
सोऽयं भूतिविभूषणः सुरवरः सर्वाधिपः सर्वदा
शर्वः सर्वगतः शिवः शशिनिभः श्रीशङ्करः पातु माम्॥१॥
मस्तके भाले बालविधुर्गले च गरलं यस्योरसि व्यालराट्।
सोऽयं भूतिविभूषणः सुरवरः सर्वाधिपः सर्वदा
शर्वः सर्वगतः शिवः शशिनिभः श्रीशङ्करः पातु माम्॥१॥
जिनकी गोद में हिमाचलसुता पार्वतीजी, मस्तक पर गङ्गाजी, ललाटपर द्वितीया का चन्द्रमा, कण्ठ में हलाहल विष और वक्षःस्थलपर सर्पराज शेषजी सुशोभित हैं, वे भस्म से विभूषित, देवताओंमें श्रेष्ठ, सर्वेश्वर, संहारकर्ता [या भक्तों के पापनाशक], सर्वव्यापक, कल्याणरूप, चन्द्रमाके समान शुभ्रवर्ण श्रीशङ्करजी सदा मेरी रक्षा करें॥१॥
प्रसन्नतां या न गताभिषेकतस्तथा न मम्ले वनवासदुःखतः।
मुखाम्बुजश्री रघुनन्दनस्य मे सदास्तुसा मञ्जुलमङ्गलप्रदा॥२॥
मुखाम्बुजश्री रघुनन्दनस्य मे सदास्तुसा मञ्जुलमङ्गलप्रदा॥२॥
रघुकुलको आनन्द देने वाले श्रीरामचन्द्रजी के मुखारविन्द की जो शोभा राज्याभिषेक से (राज्याभिषेक की बात सुनकर) न तो प्रसन्नता को प्राप्त हुई और न वनवासके दुःखसे मलिन ही हुई, वह (मुखकमल की छबि) मेरे लिये सदा सुन्दर मङ्गलोंकी देनेवाली हो॥२॥
नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं सीतासमारोपितवामभागम्।
पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम्॥३॥
पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम्॥३॥
नीले कमलके समान श्याम और कोमल जिनके अङ्ग हैं, श्रीसीताजी जिनके वाम-भागमें विराजमान हैं और जिनके हाथोंमें [क्रमशः] अमोघ बाण और सुन्दर धनुष है, उन रघुवंशके स्वामी श्रीरामचन्द्रजीको मैं नमस्कार करता हूँ॥३॥
- मंगलाचरण
- रामराज्याभिषेक की तैयारी, देवताओं की व्याकुलता तथा सरस्वतीजी से उनकी प्रार्थना
- सरस्वती का मन्थरा की बुद्धि फेरना
- कैकेयी-मन्थरा-संवाद
- दशरथ-कैकेयी-संवाद और दशरथ-शोक, सुमन्त्र का महल में जाना और वहाँ से लौटकर श्रीरामजी को महल में भेजना
- श्रीराम-कैकेयी-संवाद
- श्रीराम-दशरथ-संवाद, अवध-वासियों का विषाद, कैकेयी को समझाना
- श्रीराम-कौसल्या-संवाद
- श्रीराम-कौसल्या-सीता-संवाद
- श्रीराम-कौसल्या-सीता-संवाद
- श्रीराम-लक्ष्मण-संवाद
- श्रीलक्ष्मण-सुमित्रा-संवाद
- श्रीरामजी, लक्ष्मणजी, सीताजी का महाराज दशरथ के पास विदा माँगने के जाना, दशरथ का सीताजी को समझाना
- श्रीराम-सीता-लक्ष्मण का वनगमन और नगर-निवासियों को सोये छोड़कर आगे बढ़ना
- श्रीराम का शृंगवेरपुर पहुँचना, निषाद के द्वारा सेवा
- लक्ष्मण निषाद संवाद, श्रीराम सीता से सुमन्त्र का संवाद, सुमन्त्र का लौटना
- केवट का प्रेम और गङ्गा पार जाना
- प्रयाग पहुँचना, श्रीराम भरद्वाज संवाद, यमुनातीरनिवासियों का प्रेम
- तापस प्रकरण
- यमुना का प्रणाम, वनवासियों का प्रेम
- श्रीराम-वाल्मीकि संवाद
- चित्रकूट में निवास, कोल-भीलों के द्वारा सेवा
- सुमन्त्र का अयोध्या को लौटना और सर्वत्र शोक देखना
- सुमन्त्र का अयोध्या को लौटना और सर्वत्र शोक देखना
- दशरथ-सुमन्त्र-संवाद, दशरथ-मरण
- मुनि वसिष्ठ का भरतजी को बुलाने के लिए दूत भेजना
- श्री-भरत-शत्रुघ्न का आगमन और शोक
- भरत-कौसल्या-संवाद और दशरथ की अन्त्येष्टि क्रिया
- वसिष्ठ-भरत-संवाद, श्रीरामजी को लाने के लिए चित्रकूट जाने की तैयारी
- अयोध्यावासियों सहित श्रीभरत-शत्रुघ्न का वनगमन
- निषाद की शङ्का और सावधानी
- भरत-निषाद-मिलन और संवाद एवं भरतजी का तथा नगरवासियों का प्रेम
- भरतजी का प्रयाग जाना और भरत-भरद्वाज-संवाद
- भरद्वाज द्वारा भरत का सत्कार
- इन्द्र बृहस्पति संवाद
- भरतजी चित्रकूटके मार्ग में
- श्रीसीताजी का स्वप्न
- श्रीरामजी को कोल किरातों द्वारा भरतजी के आगमन की सूचना, रामजी का शोक, लक्ष्मणजी का क्रोध
- श्रीरामजीका लक्ष्मणजीको समझानाएवं भरतजीकी महिमा कहना
- भरतजी मन्दाकिनी-स्नान, चित्रकूट पहुँचना, भरतादि सबका परस्पर मिलाप, पिता का शोक और श्राद्ध
- वनवासियोंद्वारा भरतजीकी मण्डलीका सत्कार
- वनवासियों द्वारा भरतजी की मण्डली का सत्कार
- कैकेयीका पश्चात्ताप
- श्रीवसिष्ठजी का भाषण
- श्रीराम-भरतादि का संवाद
- जनकजी का पहुँचना
- कोलकिरातादि की भेंट, सबका परस्पर मिलाप
- कौसल्या-सुनयना-संवाद
- श्रीसीताजी का शील
- जनक-सुनयना-संवाद, भरतजी की महिमा
- जनक-वसिष्ठादि-संवाद
- इन्द्र की चिन्ता
- सरस्वती का इन्द्र को समझाना
- भरत-श्रीराम-संवाद
- श्रीराम-भरत-संवाद
- भरत जी का तीर्थ-जल-स्थापन
- चित्रकूट भ्रमण
- श्रीराम-भरत-संवाद
- पादुका-प्रदान
- भरतजी की विदाई
- भरतजी का अयोध्या लौटना
- भरतजी द्वारा पादुका की स्थापना, नन्दिग्राम में निवास
- चरित्र-श्रवण की महिमा
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