ई-पुस्तकें >> कबीरदास की साखियां कबीरदास की साखियांवियोगी हरि
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जीवन के कठिन-से-कठिन रहस्यों को उन्होंने बहुत ही सरल-सुबोध शब्दों में खोलकर रख दिया। उनकी साखियों को आज भी पढ़ते हैं तो ऐसा लगता है, मानो कबीर हमारे बीच मौजूद हैं।
हमारे देश के भक्त-कवियों में कबीर साहब का स्थान बहुत ऊंचा है। सादगी का जीवन बिताते हुए उन्होंने अध्यात्म की ऐसी धारा बहाई कि आज भी जो उसमें डुबकी लगाता है, वह बड़ी शीतलता अनुभव करता है। जीवन के कठिन-से-कठिन रहस्यों को उन्होंने बहुत ही सरल-सुबोध शब्दों में खोलकर रख दिया। उनकी साखियों को आज भी पढ़ते हैं तो ऐसा लगता है, मानो कबीर हमारे बीच मौजूद हैं। हमारी इस स्वाध्याय-पुस्तक-माला में अब तक आठ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इन सब पुस्तकों में मूल पद्यों के साथ उनका सरल अर्थ भी दिया गया है। पद्यों का चुनाव और टीका हिन्दी के विख्यात लेखक और संत-साहित्य के मर्मज्ञ श्री वियोगी हरिजी ने की है। गद्य-गीत की शैली में अर्थ होने से पुस्तक का मूल्य और भी बढ़ गया है।
कबीरदास की साखियां
अनुक्रम
- कबीरदास की साखियां
- दो शब्द
- गुरुदेव का अंग
- सुमिरण का अंग
- विरह का अंग
- जर्णा का अंग
- पतिव्रता का अंग
- कामी का अंग
- चांणक का अंग
- रस का अंग
- माया का अंग
- कथनी-करणी का अंग
- सांच का अंग
- भ्रम-बिधोंसवा का अंग
- साध-असाध का अंग
- संगति का अंग
- मन का अंग
- चितावणी का अंग
- भेष का अंग
- साध का अंग
- मधि का अंग
- बेसास का अंग
- सूरातन का अंग
- जीवन-मृतक का अंग
- समर्थाई का अंग
- उपदेश का अंग
- विविध
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