धर्म एवं दर्शन >> सुग्रीव और विभीषण सुग्रीव और विभीषणरामकिंकर जी महाराज
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सुग्रीव और विभीषण के चरित्रों का तात्विक विवेचन
हम कुछ काम करना नहीं चाहते, लेकिन ऐसा लगता है कि जैसे बलपूर्वक हमसे कोई काम कराया जा रहा है। हम चाहते हैं कि बुराइयाँ हमसे छूट जाएँ, लेकिन हम उनको छोड़ पाने में असमर्थ हो जाते हैं। विभीषण की स्थिति भी कुछ उसी प्रकार की है और जो सुग्रीव हैं, ये तो विषयी हैं। सुग्रीव के जीवन में तो विषयी जीव के जो लक्षण हैं वे सारे लक्षण विद्यमान हैं। प्रारम्भ से ही उनके मन मं भक्ति या भगवान् के प्रति कोई आकर्षण हो, ऐसा नहीं है। वे बालि के छोटे भाई हैं, पर उनका चरित्र बालि से बिल्कुल भिन्न है। यो दोनों भाई बिल्कुल एक-दूसरे से उल्टे दिखायी देते हैं।
बालि कितना बड़ा योद्धा, दृढ़ निश्चयी और साहसी है कि वह कभी पीछे नहीं हटता और किसी की चुनौती से भागता नहीं है। यह बालि के चरित्र में आपको सर्वत्र मिलेगा कि चाहे रावण चुनौती दे या मायावी चुनौती दे, बालि उस चुनौती से संघर्ष करता है। बालि जितने बड़े वीर हैं, सुग्रीव उतना ही बड़ा भगोड़ा है। उसके जीवन का सारा इतिहास भागने से ही भरा पड़ा है। कैसी अनोखी बात है कि भाई के रूप में एक भगोड़ा और एक न भागने वाला और विचित्र बात आप देखेंगे कि अन्त में दोनों ने ही ईश्वर को प्राप्त किया। कुछ लोग ऐसे होते हैं कि जो परिस्थितियों से जूझते हैं, संघर्ष करते हैं और कुछ लोग ऐसे होते हैं कि जब जटिल समस्या सामने आती है तो वे भाग खड़े होते हैं। सुग्रीव उन्हीं लोगों में से है।
बालि को मायावी ने आधी रात को ललकारा। वह लड़ने के लिए निकल पड़ा। सुग्रीव को भी जोश आया कि भाई लड़ने गया है तो हम भी चलें। सुग्रीव भी पाछे-पीछे चला, पर कहाँ तक? मायावी तो गुफा में पैठ गया। तब बालि ने सुग्रीव से कहा कि तुम बाहर ही रह जाओ। यह तो सुग्रीव के मन की बात थी। कहा कि जो आज्ञा। कुछ लोग आज्ञा तभी मानते हैं जब वह आज्ञा उनकी वृत्ति का पोषण करे। सुग्रीव भीतर नहीं जा रहे थे कायरता के कारण और नाम ले दिया आज्ञा का। बालि ने कहा कि मैं पन्द्रह दिन में वापस आ जाऊँगा। बालि भीतर पैठा। बालि के चरित्र में यह कमी है।
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