धर्म एवं दर्शन >> सुग्रीव और विभीषण सुग्रीव और विभीषणरामकिंकर जी महाराज
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सुग्रीव और विभीषण के चरित्रों का तात्विक विवेचन
बालि में साहस तो बहुत है पर अतिरिक्त आत्मविश्वास भी है और इसीलिए बालि ने एक भूल कर दी कि उसने सुग्रीव से यह कह दिया कि पन्द्रह दिन में मैं सबको हरा दूँगा। इसके साथ-साथ यह घोषणा कर दी कि अगर पन्द्रह दिन में भी न लौटूँ तो समझ लेना कि मैं मारा गया। बालि का यही गणित सही नहीं हुआ। जब बालि उसको मारता है तो उसके रक्त की धारा निकलती है और सुग्रीव ने जब रक्त की धारा देखी तो उसका स्वभाव सामने आ गया। भगवान् ने पूछा कि जब तुमने रक्त की धारा देखी तो तुम्हारे ऊपर क्या प्रभाव पड़ा? क्या तुमने सोचा कि भाई लड़ रहा है और हम भी भीतर घुस जाएँ और लड़े? सुग्रीव ने कहा कि महाराज! मैंने तो सीधी गणित कर ली कि शायद बालि मारा गया और जब इन्होंने बालि को मार दिया तो मुझे भी मार ही देंगे। इसलिए यहाँ से भाग जाना ही ठीक है। यही भगोड़ेपर की वृत्ति है, जो सुग्रीव के चरित्र में विद्यमान है।
सुग्रीव शुद्ध विषयी जीव हैं. जिसके चरित्र में साहस की भी कमी है। सुग्रीव जब भगवान् को देखता है, तब भी उसके मन में भ्रम होता है कि ये बालि के भेजे हुए दो राजकुमार मुझे मारने आये हैं। ईश्वर के विषय में जिसकी दृष्टि इतनी भ्रान्त है कि वह ईश्वर को शत्रु के रूप में देख रहा है। इसीलिए जब विभीषण भगवान् की शरण में आये तब सुग्रीव ने ही विरोध किया। यह भी विचित्र विडम्बना है कि सुग्रीव की स्थिति क्या विभीषण के ऊपर थी? पर क्रम कुछ उलट गया।
प्रस्तुत प्रसंग का सूत्र यह है कि एक ने भगवान् को कृपा से पाया और दूसरे ने साधना से पाया। कृपामार्ग से भगवान् की प्राप्ति सुग्रीव को हुई और साधनमार्ग से भगवान् की प्राप्ति विभीषण को हुई। सुग्रीव का तो संकल्प था कि यदि बालि के भेजे हुए राजकुमार हों तो मैं तो एक ही काम कर सकता हूँ कि-
पठइ बालि होहिं मन मैला।
भागौं तुरत तजौं यह सैला।। 4/0/5
ऐसा व्यक्ति जो ईश्वर को प्राप्त करने जा रहा है, न उसके जीवन में वीरता है, और न उसके जीवन में कोई सद्गुण हैं, फिर भी बड़ी अद्भुत बात है जो हनुमान् जी ने कहा –
नाथ सैल पर कपिपति रहई।
सो सुग्रीव दास तव अहई।। 4/3/2
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