धर्म एवं दर्शन >> सुग्रीव और विभीषण सुग्रीव और विभीषणरामकिंकर जी महाराज
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सुग्रीव और विभीषण के चरित्रों का तात्विक विवेचन
इसका अभिप्राय है कि ईश्वर की प्राप्ति का एक क्रम यह है कि या तो भाव हो या अभाव। भाव के द्वारा भी ईश्वर मिलेगा और अभाव के द्वारा भी मिलेगा। मुख्य बात यह है कि आपको अपनी असमर्थता की अनुभूति हो रही है कि नहीं? अगर आपको सामर्थ्य की अनुभूति हो रही है तो सामर्थ्य का सदुपयोग कीजिए और यदि असमर्थता की अनुभूति हो रही है तो उसे भगवान् के समक्ष निवेदन कीजिए। आपके घड़े में जल भरा हुआ है तो उसे पिलाकर दूसरों की प्यास बुझाइए और यदि आपका घड़ा खाली है तो उसको भगवान् के सामने रख दीजिए कि इसको तो आपको भरना है।
कृपामार्ग का तात्पर्य है कि कृपा की आवश्यकता ही मनुष्य को तब होती है, जब अपने आपमें साधना का अभाव हो। सुग्रीव का चरित असमर्थता और अभाव का चरित है। ऐसा होते हुए भी अन्त में वे भगवान् को प्राप्त कर लेते हैं। विभीषण ने तो लंका का राज्य छोड़ा और राज्य छोड़कर वे भगवान् के पास आ गये, पर सुग्रीव के पास तो कुछ था ही नहीं, वह क्या छोड़ेगा? जिसने कुछ नहीं छोड़ा, कोई त्याग नहीं किया, भगवान् ही स्वयं उसके पास पहुँच गये।
प्रसंग आता है कि जब हनुमान् जी सुषेण वैद्य को लाये तो सुषेण वैद्य तो अपने घर में सो रहे थे। उस समय हनुमान् जी का कर्तव्य था कि उनको जगाते और साथ में ले आते, पर उन्होंने जगाया नहीं, सोते हुए को भी गोद में नहीं उठाया। उनके पूरे घर को ही उठा लाये। क्योंकि आप जिसको पाना चाहते हैं, उनको घर-बार छोड़ने की क्या आवश्यकता है? सुग्रीव भी अभावग्रस्त है, पर यह भी ध्यान रखिएगा कि इतना होते हुए भी हनुमान् जी से बढ़कर कोई साधन सम्पन्न नहीं है। फिर भी हनुमान् जी ने ही सदा सुग्रीव के चरणों में प्रणाम किया, बात उल्टी हो गयी। विषयी के चरणों में सिद्ध प्रणाम करता है, हनुमान् जी सुग्रीव की प्रार्थना करते हैं –
तब सुग्रीव चरन गहि नाना।
भाँति बिनय कीन्हे हनुमाना।। 7/18/7
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