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धर्म एवं दर्शन >> सुग्रीव और विभीषण

सुग्रीव और विभीषण

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :40
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9825
आईएसबीएन :9781613016145

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सुग्रीव और विभीषण के चरित्रों का तात्विक विवेचन


प्रभु ने पूछा कि तुम सुग्रीव को इतना सम्मान क्यों देते हो? हनुमान् जी ने कहा कि प्रभो! मैं तो हर दृष्टि से जब देखता हूँ तो मुझे लगता है कि सुग्रीव से बढ़कर सौभाग्यशाली कौन होगा? भक्त लोग आपकी याद क्यों किया करते हैं? मैंने सुना है कि आप बड़े भुल्लकड़ हैं। गोस्वामीजी ने ‘विनय-पत्रिका’ में कहा कि प्रभु चार वस्तुएँ भूल जाते हैं –

1. निज कृत हित। अपना किया गया भला और -

2. अरि कृत अनहितउ। शत्रु के द्वारा किया गया बुरा और -

3. दास दोष । सेवक का दोष और -

4. सुरति चित रहति न किए दान की। अपने किये हुए दान की स्मृति नहीं रहती।

इन चार बातों को प्रभु भूल जाया करते हैं। प्रभो! आपका स्वभाव यदि किसी के लिए बदला तो केवल सुग्रीव के लिए बदला। हम लोगों के लिए को नहीं बदला। मैं तो आपके पास आया तो जब तक ब्राह्मण से बन्दर नहीं बन गया, अपने दूर ही रखा, फिर हृदय से लगाया तो पूछते रहे कि अपना परिचय दो, पर कितनी अनूठी बात हो गयी! सुग्रीव आपको भूल गये, विषयों में डूब गये फिर भी आप उसको नहीं भूले! तो महाराज जिसको आप न भूलें वह बड़ा है कि जो आपको याद करता है वह बड़ा है? जिसकी आपको इतनी याद बनी रहती है, हमको तो वही बड़ा लग रहा है।

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