धर्म एवं दर्शन >> प्रेममूर्ति भरत प्रेममूर्ति भरतरामकिंकर जी महाराज
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भरत जी के प्रेम का तात्विक विवेचन
श्री राघव :
पितृ-आज्ञा से वन गए हैं, किन्तु साथ में श्री किशोरी जी और प्रेममूर्ति लक्ष्मण-जैसे सेवक हैं। सदा जागरूक रहकर सेवा करने वाले हैं।
श्री भरत :
पिता ने राज्य दिया है, किन्तु स्वेच्छा से तपस्या कर रहे हैं। स्वयं ही पादुका व पुरवासियों की सेवा करते हैं, सेवा नहीं लेते।
श्री लक्ष्मण :
अहर्निशि सेवा में संलग्न हैं, किन्तु साहचर्य संयोग का सुख प्राप्त है।
श्री भरत :
श्री लक्ष्मण केवल प्रभु की सेवा में संलग्न हैं। पर यह महाव्रती तो प्रभु, उनकी पादुका, उनका प्रजा, सब की सेवा कर रहा है। साथ ही विरहाग्नि में शरीर को तपा रहे हैं।
श्री किशोरी जी :
सर्व त्याग करके आई हैं, पर वह तो पतिव्रता का कर्त्तव्य है। फिर सबसे बड़ी बात कि अहर्निशि प्रियतम का साहचर्य उनका स्नेह-सम्भाषण प्राप्त है।
श्री भरत :
पर यहाँ तो सर्व त्याग करने के पश्चात् भी प्रभु को संकोच न हो, इसलिए न साथ की प्रार्थना की न लौटने को कहा। स्वयं विरह कष्ट उठा रहे हैं।
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