धर्म एवं दर्शन >> प्रेममूर्ति भरत प्रेममूर्ति भरतरामकिंकर जी महाराज
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भरत जी के प्रेम का तात्विक विवेचन
गोस्वामी जी का नव अंक के प्रति विशेष अनुराग है। इसका कारण अंकशास्त्र में नव का स्थान सबसे बड़ा है। इसलिए वे बहुत्व के प्रतिपादन में नव का ही सहारा लेते हैं। उदाहरण स्वरूप –
तुम चाहहु पति सहज उदासा(1)।
निर्गुन(2), निलज(3), कुवेष(4), कपाली(5)।
अकुल(6), अगेह(7), दिगम्बर(8) व्याली(9)।।
ठीक इसके विपरीत ऋषियों ने विष्णु में बहुत गुण दिखाए वह भी –
अति सुन्दर(1), शुचि(2), सुखद(3), सुशीला(4)।
गावहिं(5) वेद जासु यश लीला।।
दूषन(6) रहित सकल गुनरासी(7)।
श्रीपति पुर(8), वैकुण्ठ(9) निवासी।।
किंवा प्रभु किसी भी प्रकार का पापी हो उसे शरण में ले लेते हैं। वहाँ भी नव प्रकार के पापियों का उल्लेख है।
क्रूर(1), कुमति(2), खल(3), कठिन(4), कलंकी(5)।
नीच(6), निशील(7), निरीश(8), निशंकी(9)।।
ऐसे अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं। भरत-चरित्र सबको सुखद है। यह प्रदर्शित करने के लिए वे नव व्यक्तियों का उल्लेख करते हैं। उनका चरित्र, कीर्ति, कर्तव्यज्ञान, धर्म-पालन, शील, गुण, निर्मल, ऐश्वर्य आदि गुण लोगों के यश रूप जल में ही वह तैरने की कला का प्रदर्शन करती है। विविध प्रकार से अपनी कला का प्रदर्शन करते हुए पार कर सकती है। किन्तु भरत महिमा जल नहीं – भूमि है।
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