धर्म एवं दर्शन >> परशुराम संवाद परशुराम संवादरामकिंकर जी महाराज
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रामचरितमानस के लक्ष्मण-परशुराम संवाद का वर्णन
दाँव पर तो आप उसी को लगा सकते हैं जो आपके पास हो और जो आपकी हो। जो वस्तु सामने वाले के पास पहले से ही है, उस वस्तु को दाँव पर लगाना उचित नहीं प्रतीत होता। अंगद के बारे में बन्दरों ने दो प्रश्न किए कि एक तो आप यह बताइए कि रावण की सभा में आपने जो प्रतिज्ञा की उसका उद्देश्य क्या था? और प्रतिज्ञा करते समय आपके मन में कोई भय या चिन्ता हुई कि नहीं? और दूसरा प्रश्न यह किया कि जब रावण के मुकुट आपके हाथ में आये तो आपने उन मुकुटों को तुरन्त क्यों फेंक दिया? आप तो लौट कर आने ही वाले थे। आप मुकुटों को बगल में दबाये रहते और जब आप भगवान् राम के पास आते तो मुकुट उनके चरणों में रख देते, लेकिन आप इतने उतावले हो गये कि ज्योंही मुकुट आपके हाथ में आये आपने तुरन्त फेंक दिया। अंगद ने उत्तर दिया कि मैं रावण की कलई खोलना चाहता था और वह खुल गई। स्थूल दृष्टि से देखने वालों को, सभी को, यह भ्रम होता है कि रावण ने सीताजी को प्राप्त कर लिया है, पर जब मैंने प्रतिज्ञा की और रावण ने यह कहा कि बन्दर का पैर पकड़कर इसको पछाड़ दो तो सुनकर मुझे हँसी आ गई। सबको यह धोखा है कि तुमने सीताजी को प्राप्त कर लिया है, पर अगर तुमने सचमुच प्राप्त कर लिया होता तो तुम यह प्रयत्न न करते। प्रयत्न करने का अर्थ यह है कि तुम्हारा प्राप्त करना नकली है, तुमने पाया कुछ नहीं। सीताजी को प्राप्त कर लेने की भ्रान्ति है। अंगद को प्रतिज्ञा करके चिन्ता हुई कि नहीं? चिन्ता तो आज तक पढ़ने वालों को भी हो जाती है। अगर चरण टल गया होता तो क्या होता?
अंगद ने बन्दरों से पूछा कि यह बताओ कि जो वस्तु मैंने दाँव पर लगाई, वह मेरी थी कि प्रभु की थी? अगर वह वस्तु प्रभु की थी तो चिन्ता प्रभु को होनी चाहिए कि मुझे होनी चाहिए? मैं क्यों चिन्ता करता? और मुकुट फेंकने में इतना उतावलापन क्यों किया? अंगद ने दो चमत्कार किये- चरण के द्वारा रावण की परीक्षा ली और जमीन पर मुक्का मारकर रावण को दूसरे सत्य का परिचय कराया। मुक्का मारते ही रावण मुँह के बल सिंहासन से जमीन पर गिर पड़ा।
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