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धर्म एवं दर्शन >> लोभ, दान व दया

लोभ, दान व दया

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :69
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9814
आईएसबीएन :9781613016206

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मानसिक गुण - कृपा पर महाराज जी के प्रवचन


उस युद्ध में उनका सबसे बड़ा जलयान जर्मनी के द्वारा डुबा दिया गया। जल सेना प्रमुख ने यह समाचार सुना तो वह बहुत घबराया। वह प्रधानमत्री चर्चिल के पास गया और बोला- महामान्य! हम लोगों के लिये एक बहुत बड़ा अशुभ समाचार है। चर्चिल ने उसकी पूरी बात सुनी और उससे पूछा - इस समय कितने बजे हैं। उसने कहा - रात के दस बजे हैं। चर्चिल ने फिर कहा - जाओ! जाकर सो जाओ। तुम्हारे जागने से यदि डूबा हुआ जहाज बाहर निकल आता तब तो जागना ठीक था, अत: अब विश्राम करो। इसका अर्थ है कि आप रात्रि में शान्ति चाहते हैं। आपको रात्रि में कोई हलचल या शोरगुल पसन्द नहीं आता। दिन में कोई न बोले तो शायद बुरा लगेगा, पर रात में तो दूसरा क्यों, अपनी पत्नी से भी आप वार्तालाप बंद करना चाहेंगे। सोना अर्थात् शांति इतनी आवश्यक है, महत्वपूर्ण है।

रामायण में कहा गया है कि यदि हम विचार करके देखें तो हमें दिखायी देगा कि गुण और दोष में कोई अंतर नहीं है। जो गुण है अतिरेक में वही दोष बन जाता है। रामायण में इसके अनेक दृष्टान्त हैं। क्रोध अच्छा है या बुरा है? भगवान् राम समुद्र के किनारे पूछ रहे हैं कि समुद्र कैसे पार करें? विभीषण जी ने कहा - अनशन कीजिये! प्रार्थना कीजिये! प्रभु ने कहा- ठीक है-
करिअ दैव जौं होइ सहाई। 5/50/1

लक्ष्मणजी ने सुना तो उनको क्रोध आ गया। और केवल क्रोध ही नहीं आया, उन्होंने प्रभु से भी यही कहा - महाराज! -
सोषिअ सिंधु करिअ मन रोषा। 5/50/3

आप भी क्रोध कीजिये! प्रार्थना से काम नहीं चलेगा। सुनकर भगवान् राम हँसने लगे - हाँ, हाँ! इसकी भी कभी आवश्यकता हो सकती है। बाद में प्रभु को क्रोध भी करना पड़ा। तो क्रोध भी चाहिये, पर अतिरेक से बचना चाहिये।

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