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वीर बालिकाएँ

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9732
आईएसबीएन :9781613012840

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साहसी बालिकाओँ की प्रेरणात्मक कथाएँ

वीर बालिका जेन

अमेरिका के मूल निवासी विद्रोही हो गये थे। एक स्थान पर विद्रोहियों की संख्या बहुत अधिक थी और गोरे लोग थोड़े थे। जब रक्षा का कोई उपाय नहीं रह गया और विद्रोही बलवान् पड़ने लगे तब गोरे लोग भाग कर किले में छिप गये। लेकिन मूल निवासियों ने किले को चारों ओर से घेर लिया। वे झाड़ियों में छिपे बैठे थे और रात्रि में किले पर आक्रमण करने की प्रतीक्षा कर रहे थे।

किले के बाहर एक लकड़ियों का झोपड़ा था। भागते समय गोरे लोग घबराहट में उस झोपड़े में ही सब बारूद भूल आये थे। अब उनकी बंदूकें बेकार थीं। दूसरे स्थान पर समाचार दे दिया गया था और आशा थी कि सबेरे तक सहायता देने के लिये सेना आ जायगी; किंतु रात को क्या होगा? रात को मूल निवासी आक्रमण करेंगे यह निश्चित था! कोई किले से बाहर जाकर झोपड़े से बारूद ले आवे यह अत्यन्त आवश्यक था। बारूद के बिना किसी के भी प्राण बचने की आशा नहीं थी। किले के चारों ओर विद्रोही छिपे थे। कोई निकला तो उसे वे अपने भालों से छेदे बिना नहीं रहेंगे।

लेकिन पचास मनुष्यों की रक्षाके लिये एक को प्राण तो देना ही होगा। तीन-चार युवकों ने किले से बाहर जाकर बारूद लाने का निश्चय किया, लेकिन उनके सेनापति ने उन्हें आज्ञा नहीं दी। इतने अधिक विद्रोहियों से युद्ध करने के लिये प्रत्येक सैनिक को सुरक्षित रखना बहुत आवश्यक था।

'मैं जाती हूँ।’ सेनापति की चौदह वर्ष की लड़की जेन आगे आ गयी। लोग आश्चर्य में डूब गये। युवकों ने विरोध किया कि इतने नौजवानों के रहते एक बालिका को मृत्यु के मुँह में नहीं जाने दिया जा सकता। लेकिन जेन अपने निश्चय पर अटल बनी रही। अन्त में द्वारपाल ने धीरे से फाटक खोल दिया और जेन बाहर निकल गयी।

बिल्ली के समान दबे पैरों जेन लुकती-छिपती झोपड़े में पहुँच गयी। बारूद की जितनी बड़ी गठरी वह ले जा सकती थी, बाँधकर चल पड़ी। लेकिन मूल निवासियों को उसकी आहट मिल गयी। चारों ओर से सन्-सन् करते हुए तीरों की वर्षा होने लगी। जेन भागी और उसके पीछे मूल निवासी दौड़े। अनेक बार ऐसा लगा कि शत्रु उसे पकड़ लेंगे; किंतु अन्त में वह किले के फाटक पर पहुँच गयी और द्वारपाल ने झटपट उसे भीतर ले लिया।

मूल निवासियों ने किले पर भाले, तीर, पत्थर, आदि की वर्षा आरम्भ कर दी। लेकिन उन्हें पीछे भागना पड़ा, क्योंकि बारूद आ जाने से अब किले से गोरों की बंदूकें आग बरसाने लगीं थीं। जेन ने अपने प्राण संकट में डालकर सारे साथियों के प्राण बचा लिये।

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