गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिवपुराण शिवपुराणहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
'शिवपुराण' एक प्रमुख तथा सुप्रसिद्ध पुराण है जिसमें परात्पर परब्रह्म परमेश्वर के 'शिव' (कल्याणकारी) स्वरूप का तात्त्विक विवेचन, रहस्य, महिमा एवं उपासना का सुविस्तृत वर्णन है। भगवान् शिव मात्र पौराणिक देवता ही नहीं, अपितु वे पंचदेवों में प्रधान, अनादि सिद्ध परमेश्वर हैं एवं निगमागम आदि सभी शास्त्रों में महिमामण्डित महादेव हैं। वेदों ने इस परमतत्त्व को अव्यक्त, अजन्मा, सबका कारण, विश्वप्रपंच का स्रष्टा, पालक एवं संहारक कहकर उनका गुणगान किया है। श्रुतियों ने सदाशिव को स्वयम्भू, शान्त, प्रपंचातीत, परात्पर, परमतत्त्व, ईश्वरों के भी परम महेश्वर कहकर स्तुति की है। 'शिव' का अर्थ ही है-'कल्याणस्वरूप' और 'कल्याणप्रदाता'। परमब्रह्म के इस कल्याणरूप की उपासना उच्चकोटि के सिद्धों, आत्मकल्याणकामी साधकों एवं सर्वसाधारण आस्तिक जनों-सभी के लिये परम मंगलमय, परम कल्याणकारी, सर्वसिद्धिदायक और सर्वश्रेयस्कर है। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि देव, दनुज, ऋषि, महर्षि, योगीन्द्र, मुनीन्द्र, सिद्ध, गन्धर्व ही नहीं, अपितु ब्रह्मा-विष्णु तक इन महादेव की उपासना करते हैं। भगवान् श्रीराम तथा श्रीकृष्ण के तो ये परमाराध्य ही हैं।
यह सर्वविदित तथ्य है कि प्राचीनकाल से ही शिवोपासना का प्रचार-प्रसार एवं बाहुल्य मात्र भारत के सभी प्रदेशों में ही नहीं, अपितु न्यूनाधिकरूप से सम्पूर्ण विश्व में भी होता आ रहा है।
शिव के इस लोककल्याणकारी, आराध्य-स्वरूप, महत्त्व एवं उपासना-पद्धति से सर्वसाधारण- जन को परिचित कराने के उद्देश्य से गीताप्रेस ने सन् १९६२ ई० में 'कल्याण' हिन्दी-मासिक पत्र के ३६वें वर्ष के विशेषांक के रूप में 'संक्षिप्त शिवपुराणांक' (शिवपुराण का संक्षिप्त हिन्दी-रूपान्तर) सर्वप्रथम प्रकाशित किया था।
इसमें पुराणानुसार शिवतत्त्व के विशद विवेचन के साथ शिव-अवतार, महिमा तथा लीला-कथाओं के अतिरिक्त पूजा-पद्धति एवं अनेक ज्ञानप्रद आख्यान और शिक्षाप्रद गम्भीर तथा रोचक एवं प्रेरणादायी कथाओं का भी सुन्दर संयोजन है। सभी श्रद्धालु आस्तिक जनों एवं जिज्ञासु सज्जनों को इस दुर्लभ और उपादेय ग्रन्थ का अनुशीलन कर अधिकाधिक लाभ उठाना चाहिये।
- श्रीशिवपुराण-माहात्म्य
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- शौनकजी के साधन विषयक प्रश्न करने पर सूतजी का उन्हें शिवपुराण की उत्कृष्ट महिमा सुनाना
- शिवपुराण के श्रवण से देवराज को शिवलोक की प्राप्ति तथा चंचुला का पाप से, भय एवं संसार से वैराग्य
- चंचुला की प्रार्थना से ब्राह्मण का उसे पूरा शिवपुराण सुनाना और समयानुसार शरीर छोड़कर शिवलोक में जा चंचुला का पार्वतीजी की सखी एवं सुखी होना
- चंचुला के प्रयत्न से पार्वतीजी की आज्ञा पाकर तुम्बुरु का विन्ध्यपर्वत पर शिवपुराण की कथा सुनाकर बिन्दुग का पिशाचयोनि से उद्धार करना तथा उन दोनों दम्पति का शिवधाम में सुखी होना
- शिवपुराण के श्रवण की विधि तथा श्रोताओं के पालन करने योग्य नियमों का वर्णन
- विद्येश्वरसंहिता
- प्रयाग में सूतजी से मुनियों का तुरंत पापनाश करनेवाले साधन के विषय में प्रश्न
- शिवपुराण का परिचय
- साध्य-साधन आदि का विचार तथा श्रवण, कीर्तन और मनन - इन तीन साधनों की श्रेष्ठता का प्रतिपादन
- भगवान् शिव के लिंग एवं साकार विग्रह की पूजा के रहस्य तथा महत्व का वर्णन
- महेश्वर का ब्रह्मा और विष्णु को अपने निष्कल और सकल स्वरूप का परिचय देते हुए लिंगपूजन का महत्त्व बताना
- पाँच कृत्यों का प्रतिपादन, प्रणव एवं पंचाक्षर-मन्त्र की महत्ता, ब्रह्मा-विष्णु द्वारा भगवान् शिव की स्तुति तथा उनका अन्तर्धान
- शिवलिंग की स्थापना, उसके लक्षण और पूजन की विधि का वर्णन तथा शिवपद की प्राप्ति करानेवाले सत्कर्मों का विवेचन
- मोक्षदायक पुण्यक्षेत्रों का वर्णन, कालविशेष में विभिन्न नदियों के जल में स्नान के उत्तम फल का निर्देश तथा तीर्थों में पाप से बचे रहने की चेतावनी
- सदाचार, शौचाचार, स्नान, भस्मधारण, संध्यावन्दन, प्रणव-जप, गायत्री-जप, दान, न्यायत: धनोपार्जन तथा अग्निहोत्र आदि की विधि एवं महिमा का वर्णन
- अग्नियज्ञ, देवयज्ञ और ब्रह्मयज्ञ आदि का वर्णन, भगवान् शिव के द्वारा सातों वारों का निर्माण तथा उनमें देवाराधन से विभिन्न प्रकार के फलों की प्राप्ति का कथन
- देश, काल, पात्र और दान आदि का विचार
- पृथ्वी आदि से निर्मित देवप्रतिमाओं के पूजन की विधि, उनके लिये नैवेद्य का विचार, पूजन के विभिन उपचारों का फल, विशेष मास, वार, तिथि एवं नक्षत्रों के योग में पूजन का विशेष फल तथा लिंग के वैज्ञानिक स्वरूप का विवेचन
- षडलिंगस्वरूप प्रणव का माहात्म्य, उसके सूक्ष्म रूप (ॐकार) और स्थूल रूप (पंचाक्षरमन्त्र) का विवेचन, उसके जप की विधि एवं महिमा, कार्यब्रह्म के लोकों से लेकर कारणरुद्र के लोकों तक का विवेचन करके कालातीत, पंचावरण विशिष्ट शिवलोक के अनिर्वचनीय वैभव का निरूपण तथा शिवभक्तों के सत्कार की महत्ता
- बन्धन और मोक्ष का विवेचन, शिवपूजा का उपदेश, लिंग आदि में शिवपूजन का विधान, भस्म के स्वरूप का निरूपण और महत्त्व, शिव एवं गुरु शब्द की व्युत्पत्ति तथा शिव के भस्मधारण का रहस्य
- पार्थिवलिंग के निर्माण की रीति तथा वेद-मन्त्रों द्वारा उसके पूजन की विस्तृत एवं संक्षिप्त विधि का वर्णन
- पार्थिवपूजा की महिमा, शिवनैवेद्यभक्षण के विषय में निर्णय तथा बिल्व का माहात्म्य
- शिवनाम-जप तथा भस्मधारण की महिमा, त्रिपुण्ड्र के देवता और स्थान आदि का प्रतिपादन
- रुद्राक्षधारण की महिमा तथा उसके विविध भेदों का वर्णन
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