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वीर बालिकाएँ

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9732
आईएसबीएन :9781613012840

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साहसी बालिकाओँ की प्रेरणात्मक कथाएँ

साहब के सिर पर तो मौत खेल रही थी। उसे लगता था कि एक लड़की उसका कर ही क्या सकती है। उसने मरीचि का हाथ फिर से पकड़ लिया कसकर। अब मरीचि ने मन-ही-मन भगवान को पुकारा और बायें हाथ से अपने जूडे में से छूरी निकालकर उसे अंग्रेज की छाती में भोंक दिया। अंग्रेज भूमि पर गिर पड़ा और तड़पने लगा।

मरीचि अपनी बहिन के साथ घर लौटी। उसकी छोटी बहिन ने अपने पिता से सब बातें बतायी। इतने में बहुत-से अंग्रेज घोड़ों पर चढ़े आये और उन्होंने यशपालसिंह का घर चारों ओर से घेर लिया। उस घायल अंग्रेज ने अपने साथियों को बताया था कि यशपालसिंह की लड़की ने बिना कारण ही उसे मारा हे। अपने पिता का घर अंग्रेजों ने घेर लिया है, यह देखकर मरीचि को बहुत क्रोध आया। अपनी छूरी लेकर वह निकल पड़ी और उसने उन सब अँग्रेजों को ललकारा- 'मैंने तुम्हारे दुष्ट साथी को मारा है। जो भी मुझे बुरी दृष्टि से देखेगा, मेरी छूरी उसका रक्त पी लेगी। क्या करना है तुम लोगों को? ’

अंग्रेज एक बालिका का यह साहस और रौद्र रूप देखकर चकित हो गये। जब उन लोगों को पूरी बात का पता लगा, तब वे सब बिना कुछ बोले वहाँ से चुपचाप लौट गये।

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