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वीर बालिकाएँ

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9732
आईएसबीएन :9781613012840

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साहसी बालिकाओँ की प्रेरणात्मक कथाएँ

मरीचि

भारत के उत्तर में नेपाल और भूटान के बीच में सिक्किम एक छोटा-सा राज्य है। वहाँ के सरकारी अधिकारी यशपालसिंह की पुत्री मरीचि बड़ी ही सुन्दर, वीर और भगवान की भक्त थी। वैसे भी सिक्किम की स्त्रियाँ वीर होती हैं। वे जब जंगल में घूमने या लकड़ियाँ अथवा ओषधियां लेने जाती हैं तो अपने जूड़े में एक छूरी घोंपकर घर से निकलती हैं। यह छूरी वन-पशुओं से बचने और जड़ी-बूटियाँ इकट्ठी करने में सहायक होती है। मरीचि को भी वन में घूमना बहुत पसंद था। वह अपने जूड़े में छूरी घोंप कर वन में दूर तक चली जाती और वहाँ से सुन्दर-सुन्दर फूल इकट्ठे कर लाती।

एक दिन मरीचि अपनी छोटी बहिन के साथ वन में गयी। वे दोनों बहिनें वहाँ इधर-से-उधर दौड़ती हुई खेल में लग गयीं। एक अंग्रेज वहाँ झाड़ी के पीछे छिपा दोनों लड़कियों को देख रहा था। मरीचि की सुन्दरता पर वह मोहित हो गया। उसने झाड़ी से बाहर आकर मरीचि को पुकारा। भोली-भाली मरीचि उसके पास जाकर खड़ी हो गयी। वह अंग्रेज एकटक मरीचि को देखने लगा। यह बात मरीचि को अच्छी नहीं लगी। वह पीछे लौटने लगी।

अंग्रेज बोला- 'जाओ मत। रुको! तुम नहीं जानती कि मैं यहाँ का अफसर हूँ। मैं तुमको पसंद करता हूँ। तुम मेरे बँगले पर चलो और सुख से रहो।’

मरीचि की समझ में अब यह बात आयी कि अंग्रेज अफसर का भाव बुरा है। उसने कहा- 'तुम्हें एक लड़की से ऐसी बात कहते लज्जा नहीं आती?'

अंग्रेज तो अपनी शान में अंधा हो रहा था। उसने लपककर मरीचि का हाथ पकड़ लिया। एक झटके से हाथ छुड़ाकर मरीचि गर्जती हुई बोली- 'साहब बहादुर! अब जरा भी आगे बडे तो खबरदार!'

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