ई-पुस्तकें >> वीर बालिकाएँ वीर बालिकाएँहनुमानप्रसाद पोद्दार
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साहसी बालिकाओँ की प्रेरणात्मक कथाएँ
रूपनगर बहुत छोटा राज्य था। राजा विक्रमसिंह में औरंगजेब से युद्ध करने का साहस नहीं था। उसने कहा 'मेरी लड़की बादशाह की बेगम बन जाती है तो इसमें बुरी बात क्या है। बहुत बड़े-बडे राजाओं ने बादशाहों को अपनी लड़कियाँ दी हैं।' चंचलकुमारी ने अपने पिता का निश्चय सुना तो वह भौचक्की रह गयी। उसने दृढ़तापूर्वक कहा- 'मैं हिंदू-कन्या हूँ, मुगलानी नहीं बनूँगी।'
लेकिन विक्रमसिंह को अपने प्राणों का मोह था। वे पुत्री को समझाने लगे- 'बेटी! रूपनगर में रक्त की नदी बह जायगी। हम सब मारे जायेंगे और फिर तुझे बादशाह के वहाँ जाना ही पड़ेगा। तू ऐसा हठ मत कर कि हमारा कुल ही युद्ध में नष्ट हो जाय।' चंचलकुमारी ने कहा- 'पिताजी! आप मेरी रक्षा नहीं कर सकते तो मैं अपनी रक्षा कर लूँगी।' उसने हिंदूपति महाराणा प्रताप के वंशधर राणा राजसिंहको पत्र लिखकर सहायता की प्रार्थना की।
एक बालिका अपने धर्म की रक्षा के लिये सहायता चाहे तो भला सच्चा राजपूत उसे कैसे अस्वीकार कर देगा। राणा ने तुरंत अपनी सेना को तैयार होने की आज्ञा दे दी और चंचलकुमारी के पास कहला दिया- 'चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है।' औरंगजेब के सेनापति को रूपनगर में युद्ध नहीं करना पड़ा। राजा विक्रमसिंह सोलंकी ने अपनी पुत्री का डोला चुपचाप दे दिया। सेनापति बड़ी प्रसन्नता से दिल्ली को चल पड़े; लेकिन जब वे अरावली पर्वत की सँकरी घाटी में पहुँचे तब पर्वत की दोनों चोटियों से सौ-सौ मन के पत्थर बरसने लगे। मुगल सेना के लिये आगे जाने का तो रास्ता बंद ही हो गया, पीछे भागने का रास्ता भी पत्थरों से बंद हो गया। पत्थरों की मार से हजारों सैनिक मर गये। जो बचे वे किसी प्रकार जान लेकर भाग खड़े हुए।
मुसलमानी सेना के नष्ट होने और भाग जाने पर राणा राजसिंह अपने सैनिकों के साथ पर्वत से उतरे। उन्होंने चंचल कुमारी से कहा- 'राजकुमारी! शत्रु भाग गये। अब आप कहें तो मैं आपको आप के पिता के यहाँ भेज दूँ।'
चंचलकुमारी राणा के पैरों पर गिरकर बोली- 'मुझे आप अपने चरणों में ही स्थान दें। महाराणा राजसिंह ने उस वीर राजकुमारी को मेवाड़ की महारानी बनाया।
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