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वीर बालिकाएँ

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9732
आईएसबीएन :9781613012840

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साहसी बालिकाओँ की प्रेरणात्मक कथाएँ

चंचलकुमारी

एक मुसलमान बुढ़िया हाथ से बनाये चित्र बेचती घूम रही थी। वह रूपनगर में वहाँ के राजा विक्रमसिंह सोलंकी के महल में गयी। राजकुमारी चंचल ने उसके चित्र देखे। बुढ़िया के पास राजा, बादशाह, नवाबों के बड़े सुन्दर-सुन्दर चित्र थे। उसने राजकुमारी को अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ आदि मुसलमान बादशाहों के चित्र दिखलाये। राजकुमारी ने उससे हिंदूराजाओं के चित्र दिखलाने को कहा तो बुढ़िया ने राजा मानसिंह, जयसिंह आदि ऐसे राजाओं के चित्र दिखलाने प्रारम्भ किये, जिन्होंने मुसलमान बादशाहों की अधीनता मान ली थी। राजकुमारी ने कहा- 'ये तो मुसलमानों के गुलाम हैं।'

बुढ़िया के दिखलाने पर चंचलकुमारी ने महाराणा प्रताप, करनसिंह राजसिंह के चित्र पसंद करके ले लिये। लेकिन उस मुसलमान बुढ़िया को यह बात अच्छी नहीं लगी। उसने बादशाह औरंगजेब का चित्र निकालकर कहा- 'राजकुमारी! ये आलमगीर बादशाह हैं, इन्हें सिर झुकाओ।’

चंचलकुमारी बोली- 'मैं इसे मस्तक झुकाऊँगी? जूती की नोक पर मारती हूँ इसको मैं।'

बुढ़िया ने डाँट बतायी- 'कहीं शहंशाह यह बात सुन लेंगे तो तुम्हारे रूपनगर की एक ईंट तो बच नहीं सकती।'

चंचलकुमारी को क्रोध आ गया। उसने अपनी सखियों से कहा कि सब उस चित्र पर एक-एक लात मारें। बहुत-सी लड़कियों के लात मारने से चित्र टुकड़े-टुकड़े हो गया। वह मुसलमान बुढ़िया अपने बिके चित्रों के दाम और उस फटे चित्र के टुकड़े लेकर वहाँ से तो चुपचाप चली गयी, किंतु दिल्ली जाकर उसने औरंगजेब को ये चित्र के टुकड़े दिखाये और सब बातें सुनायी। औरंगजेब क्रोध के मारे तिलमिला उठा। उसने तुरंत सेनापति को बुलाकर रूपनगर पर चढाई करने की आज्ञा दी। उसने निश्चय कर लिया कि 'उस दुष्ट लड़की से विवाह करके मैं उसका सब घमंड तोड़ दूँगा।'

औरंगजेब की सेना रूपनगर की ओर चल पड़ी। साथ ही रूपनगर में औरंगजेब का दूत राजा विक्रमसिंह सोलंकी के पास यह संदेश लेकर आया कि 'या तो अपनी लड़की का डोला दे दो नहीं तो रूपनगर को मिट्टी में मिला दिया जायगा।'

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