ई-पुस्तकें >> वीर बालिकाएँ वीर बालिकाएँहनुमानप्रसाद पोद्दार
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साहसी बालिकाओँ की प्रेरणात्मक कथाएँ
वीर बाला पद्मा
पद्मा का जन्म भोपाल-राज्य में एक गरीब कृषक क्षत्रिय के घर हुआ था। जब पद्मा केवल ढाई वर्ष की थी, उसके माता-पिता की मृत्यु हो गयी। सोलह बर्ष के भाई जोरावरसिंह ने अपनी छोटी बहिन का पालन-पोषण किया। जोरावरसिंह बालक होने पर भी वीर पुरुष था। उसने अपनी बहिन को बचपन से ही भाला-तलवार आदि चलाने तथा घुड़सवारी की शिक्षा देनी प्रारम्भ की। पद्मा ने मन लगाकर युद्ध-विद्या सीखी और वह कुशल योद्धा हो गयी। घर के प्रबन्ध में भी वह बड़ी चतुर थी।
धीरे-धीरे पिता का धन समाप्त हो गया। जोरावरसिंह पर बहुत-सा कर्ज हो गया। जिस महाजन का कर्ज था, उसने अनेक बार उलाहने दिये, खरी-खोटी सुनायी और अन्त में भोपाल-दरबार में नालिश कर दी। कर्ज तो था ही, राज्य ने जोरावरसिंह-को कैद कर लिया। अब बेचारी पद्मा अकेली रह गयी। भाई के कैद हो जाने का उसे बहुत अधिक दुःख था। उसने भाई को छुड़ाने का निश्चय किया। अब उसने स्त्री का वेश छोड़ दिया और एक राजपूत सैनिक का वेश धारण करके वह ग्वालियर पहुँच गई। उस समय ग्वालियर-नरेश थे महाराज दौलतरावजी सिंधिया। पद्मा ने पद्मसिंह नाम बताकर सेना में नौकरी पाने की प्रार्थना की। निशाना लगाना, घुड़सवारी, भाला चलाना आदि कार्यों में उसकी परीक्षा ली गयी और वह उनमें वह सफल रही। उसे सेना में नौकरी मिल गयी।
उन दिनों सिंधिया और अंग्रेज-सरकार में युद्ध छिड़ा हुआ था। तीन वर्ष तक यह युद्ध चलता रहा। पद्मा ने इस युद्ध में इतनी वीरता दिखायी कि वह साधारण सैनिक से हवलदार बना दी गयी। उसकी जाँघ तथा भुजा में कई बार गोलियाँ लगीं, किंतु सदा वह स्थिर रही। शत्रुओं को उसके सामने से भागना ही पड़ता था। वह अपने को सावधानी से छिपाये रखती थी। स्नानादि के लिये सबसे पृथक चली जाती थी। उसे एक ही चिन्ता थी - अपने भाई को कारागार से छुड़ाने की। उसे जो वेतन मिलता था, उसमें से बहुत थोड़ा खर्च करती अपने लिये, शेष बचाकर रखती जाती थी।
कुछ लोगों को संदेह हुआ कि यह बिना मूछों का हवलदार उनके साथ कभी स्नानादि क्यों नहीं करता। क्यों वह सदा कपड़े पहने रहता है। एक सैनिक ने छिपकर पद्मा का पीछा किया और उसे पता लग गया कि वह स्त्री है। जब यह समाचार सिंधिया-दरबार में पहुँचा, तब राजा ने बुलाकर पद्मा से पुरुष वेष धारण करने का कारण पूछा। पद्मा रो पड़ी, उसने अपने भाई के बंदी होने की बात बतायी। महाराज सिंधिया उसकी वीरता तथा भ्रातृ-भक्ति से बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने सरकारी खजाने से कर्ज का धन भोपाल भिजवा दिया और पत्र लिख दिया कि जोरावरसिंह को कैद से छोड्कर तुरंत ग्वालियर भेज दिया जाय।
जोरावरसिंह छूट गये। ग्वालियर आकर अपनी बहिन से मिलकर वे बहुत प्रसन्न हुए। महाराज सिंधिया ने जोरावरसिंह को सेना में एक अच्छा पद दे दिया और पद्मा का विवाह एक सेनापति के साथ करवा दिया।
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